निर्माता: राहुल मित्रा, नीतिन तेज आहूजा, वाजिद अली
निर्देशक: तिग्मांशु धूलिया
स्टार: **1/2
उत्तर प्रदेश की राजनैतिक साजिशों पर आधारित कहानी है, 'बुलट राजा'। फ़िल्म में सिर्फ दो ही चीजें है, या तो सत्ताधारी राजनेताओं की सत्ता हथियानें की चालें या फिर तमंचों की धाय-धाय। फ़िल्म में विलेन की संख्या इतनी है कि अगर उन्हें एक कतार में खड़ा कर के गोलियां मारनी शुरू की जाए तो फ़िल्म की कहानी पूरी हो जाए। फ़िल्म की शुरुआत में ही दो विरोधी दलों के ख़त्म होने के बाद लगता है कि विलेन तो ख़त्म हो गये, अब आगे क्या। लेकिन फिर एक और नये विलेन की ऐंट्री और हीरो का एक और नया उद्देश्य।
हमेशा से अपनी फिल्मों में बेहद दमदार और ज़मीनी मुद्दों को उठाने वाले तिग्मांशु धूलिया के पास अबकी बार गोलियां ही इतनी थी कि ख़त्म करने के लिए इतने विलेन इतने इकट्ठे करने पड़े और पूरी फ़िल्म उसी में ही निकल गई। फ़िल्म की कहानी में और कुछ रखने की जगह ही नहीं बची।
खैर 'बुलट राजा' वैसे तो उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर पर आधारित है, लेकिन इसके अलावा इसके कुछ दृश्य मुंबई और कोलकाता में भी फिल्माए गये है। फ़िल्म की कहानी संयोग से बने ऐसे दो दोस्तों की है, जो ना चाहते हुए भी गुंडा गर्दी के धंधे में उतर जाते है, और शुरू से लेकर आखिर तक इनका प्रयोग सत्ता धारी राजनेता अपने फ़ायदे के लिए करते है। हालाँकि इसी जुगत में एक दोस्त की पहले ही मृत्यु हो जाती है और फिर शुरू होता दूसरे दोस्त के बदले का सफर शुरू।
कहानी: ये दो दोस्त है, राजा मिश्रा (सैफ अली खान) और रूद्र (जिम्मी शेरगिल) की। जो गलती से रूद्र के घर एक शादी में मिल जाते है और सिर्फ चार घंटे में ही गहरे दोस्त बन जाते है। ख़ासकर रूद्र का एक बाहुबली घर से सम्बंध होना और राजा के शौंकिया तौर पर पंगे लेने की आदत के चलते दोनों की दोस्ती और भी गहरी हो जाती है। इनमें से रूद्र तो एक कूरियर कंपनी में काम करता है, लेकिन राजा बेरोजगार है। हालाँकि दोनों के आस-पास का माहौल बेहद गर्म है, लेकिन ये दोनों गुंडा गर्दी और मारपीट से दूर ही रहना चाहते है। मगर ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि इनके चारों तरफ के हालात इन्हे शांति से जीने की इजाज़त नहीं देते, और ये तब होता है, जब रूद्र के ही परिवार का एक बेहद यकीनी सदस्य लल्लन (चंकी पांडे) रूद्र के चाचा (शरत सक्सेना) के विरोधियों के साथ मिलकर उनकी हत्या करवा देता है। अब ये दोनों रूद्र के चाचा की मौत का बदला लेते है और पहुंच जाते है जेल।
अब वहाँ इनकी मुलाकात होती हैं एक सरगना से जेल में ही बैठ कर पूरे शहर पर राज करता है। जो इन्हें मोहरा बनाता है, अपनी राजनैतिक चाल का। और इन्हें झौंक देता हैं बड़े-बड़े राजनीतिक व्यापारियों के बीच। जो इन्हें अपने-अपने व्यक्तिगत फायदों के लिए प्रयोग करते है। जिनमें से एक है वरिष्ट नेता राम बाबू शुक्ला (राज बब्बर) । जब राजा और रूद्र शुक्ला के एक विरोधी को मौत के घाट उतार देते तो शुक्ला उनके सिर पर अपना हाथ रख देता है।
इसके बाद कहानी में ऐंट्री होती है, एक बड़े मारवाड़ी व्यापारी बजाज (गुलशन ग्रोवर) की जो वहाँ लखनऊ की अफ़ीम की खेती पर अपना कब्ज़ा जमाने की योजना बनाता है। ऐसे में शुक्ला राजा और रूद्र को उनकी सुरक्षा के लिए भेजता है लेकिन बजाज से बेइज्जती खाने के बाद दोनों बजाज को इसका सबक सिखाने के लिए निकल पड़ते है, और वह पकड़ा जाता हैं एक होटल के कमरे में एक लड़की मिताली (सोनाक्षी सिन्हा) के साथ जो बेहद मासूम हैं और बजाज की नियत से अंजान, उसे बंगाल से इंटरव्यू देने आती है।
लेकिन तभी राजा और रूद्र होटल में पहुंच जाते है, और दोनों को किडनैप कर लेते है। अब ये दोनों बजाज से पैसे मांग कर उसे छोड़ देते हैं। अब यहाँ से राजा का रोमांस शुरू होता है मिताली के साथ और दुश्मनी शुरू होती है बजाज के साथ। ऐसे में बजाज मौक़ा पाते ही रूद्र पर यादव (रवि किशन) के साथ मिलकर हमला कर देता है और यादव रूद्र को जान से मार देता है। अब शुरू होता हैं दौर राजा के यादव और बजाज से बदला लेने का।
अब वह यादव और बजाज को मारकर अपने दोस्त रूद्र की मौत का बदला लेता है। लेकिन यहाँ तक पहुंचते-पहुंचते राजा शहर में युवाओं का आदर्श बन जाता है और नाम पड़ जाता है बुलट राजा। और अब इसकी दुश्मनी सत्ता के लिए लड़ने वाले सभी राजनीतिक सत्ताधारियों से है, जो बुलट राजा को मारने के लिय लग जाते है। सभी को पता है कि बुलट राजा को मारना इतना आसान नहीं हैं, इसीलिए इस काम के लिए बुलाया जाता है, चंबल में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर मुन्ना (विधुत जामवाल) को। अब आगे क्या होता है, और क्या सत्ता धारी अपने मंसूबों में कामयाब हो पाते है, ये तो आपको फ़िल्म देखकर ही पता चलेगा।
अभिनय: अभिनय के मामले में तो सभी किरदारों का जवाब नहीं है। सैफ अली खान, जिमी शेरगिल फ़िल्म के मुख्य हीरो है और दोनों ने ही बेहद अच्छा काम किया है। सैफ अली खान का किरदार बेहद जबरजस्त था उन्होंने फ़िल्म में बुलट राजा के किरदार को निभाने में पूरी ताकत झौंक दी है। उनका अभिनय देखने लायक है। वहीं अगर जिमी शेरगिल की बात की जाए तो उनका किरदार फ़िल्म में कम था लेकिन जितना भी था दर्शक उन्हें पूरी फ़िल्म में याद करते है। वहीं सोनाक्षी सिन्हा के हिस्से में उनकी पहली फिल्मों से कुछ ज्यादा अलग तो नहीं था। लेकिन जितने हिस्से में उन्होंने बंगाली किरदार निभाया है और भाषा बोली है, उसे देख कर लगता नहीं है कि वह बंगाली नहीं है। विधुत जामवाल कमाल के एक्शन हीरो है। उन्होंने अब तक कम ही फ़िल्में की है, लेकिन उनका अभिनय और एक्शन दोनों ही जबरजस्त है। वहीं गुलशन ग्रोवर, रवि किशन, चंकी पांडे और राज बब्बर ने भी अच्छा काम किया है।
संगीत: फ़िल्म का संगीत कुछ ख़ास नहीं है। वह मात्र ओपचारिकता ही लगते है। फ़िल्म की शुरुआत पहले फ़िल्म के टाइटल ट्रैक और फिर माही गिल के 'डोंट टच...' से होती है। इनके अलावा सटाके ठोको, 'सामने हैं सवेरा', 'जय गोविंदा जय गोपाला' और तमंचे पे डिस्को। जैसे गाने है, जो ज्यादा देर दिमाग में टिकने वालों में से नहीं है।