फ़िल्म समीक्षा:​ महापकाऊ फ़िल्म हैं 'मि. जो बी कार्वाल्हो'

Friday, January 03, 2014 21:59 IST
By Lata Chowdhry, Santa Banta News Network
अभिनय: अरशद वारसी, सोहा अली खान, करिश्मा कोटक, जावेद जाफरी, ​​शक्ति कपूर,​ मनोज जोशी​, ​ ​हिमानी शिवपुरी​, ​विजय राज

​स्टार:1/2

​'मि. जो बी कार्वाल्हो' ​ ​शुरू ​​से लेकर अंत तक सिर्फ एक ​पकाऊ फ़िल्म है, जिसमें फ़िल्म शुरू होते ही दर्शक समझ जाते हैं कि हमने टिकेट के पैसे बर्बाद कर दिए। कहने कि लिए तो यह एक कॉमेडी फ़िल्म है, लेकिन आप रोते हुए बाहर निकलते है। फ़िल्म की कहानी इतनी जटिल है कि दर्शक समझ ही नहीं पाते कि ये हो क्या रहा है। अरशद वारसी फ़िल्म में एक बेवकूफ डिटेक्टिव के किरदार में है। जो ड्रग्स माफिया की जासूसी कर रहा है और अंत में वह पता लगा लेता है कि इन्होने केबल वाले के पैसे नहीं दिए इसलिए ये गुन्हेगार है। कोकीन को वह आटा बताता है।

इस फ़िल्म की कहानी महेश रामचंदानी ​ ने लिखी है, और लगता हैं कि लिखते समय उन्हें खुद भी नहीं पता था कि लिखू क्या। वहीं फ़िल्म का निर्देशन समीर तिवारी ने ​किया है वह भी फ़िल्म में दिख ही रहा है। दर्शक समझ ही नहीं पाते कि कौन सा दृश्य हंसने के लिए हैं और कौन सा दुखी होने के लिए। कहानी: फ़िल्म की कहानी एक ऐसे महा बेवकूफ ​डिटेक्टिव मि.जो बी करवालो (अरशद वारसी) की है, जो इसलिए डिटेक्टिव बना क्योंकि यह उसके पिता का व्यवसाय था। जो के पास कोई काम तो हैं नहीं इसीलिए वह कभी पड़ोस के दूधवाले के दूध में पानी खोज निकलता है, तो कभी ड्रग्स स्मग्लर को टीवी के केबल का चार्ज ना देने के जुर्म में पकड़वाता है। जिसमें उसे शाबाशी मिलती हैं उसकी अंधी माँ (हिमानी शिवपुरी) से जो उसकी ऐसी कारस्तानियों पर बड़ी खुश होती हैं और कहती हैं कि तु बहुत अच्छा डिटेक्टिव है। सिर्फ अपने प्रोफेशन के मामले में ही नहीं जो प्रेम के मामले में भी निरा मूर्ख है, वह अपनी बचपन की फ्रेंड से गर्लफ्रेंड बनी शांति प्रिया (सोहा अली खान) को भी अपनी मूर्खता भरे कारनामों की वजह से खो देता है। आखिर कार इस जो बी को एक केस मिलता हैं खुराना (शक्ति कपूर) से। शक्ति कपूर उसे हायर करता हैं अपनी बेटी नीना (करिश्मा कोटक) को घर वापिस लाने के लिए जो एक बावर्ची रामलाल के साथ भाग गई है। अब जो जुट जाता है इस काम में। वहीं शांति जो से अलग होने के बाद बन जाती हैं पुलिस अफसर। वहीं दूसरी और फ़िल्म में एक अंतर्राष्ट्रीय अपराधी कार्लोस भी है जो भारत किसी मिशन पर आता है, और शांति को ​पुलिस कमिश्नर (मनोज जोशी) कार्लोस को पकड़ने के मिशन पर लगा देता है। अब अपने-अपने इस उद्देश्य के कारण दोनों में ग़लतफ़हमी होती है, जहाँ जो बी उसे एक बार डांसर समझता है और वह उसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी कार्लोस समझ लेती है। अब जो बी का उद्देश है, नीना को रामलाल से शादी करने से रोकना और शांति का मकसद हैं कार्लोस को पकड़ना। इसके बाद जो बी के सामने एक सच आता है जिसमें उसे पता चलता है कि उसे डिटेक्टिव समझ कर नहीं बल्कि एक बेवकूफ समझ कर काम दिया गया है।

अभिनय: फ़िल्म की पकाऊ कहानी में अरशद ने भी अपनी ओवरएक्टिंग से चार चाँद लगा दिए है। अरसद के चाहने वालों ने उनसे ऐसी उम्मीद नहीं की होगी, ये उनके लिए बहुत बड़ा धक्का है। अरशद से ऐसे अभिनय और इस तरह की फ़िल्म की किसी ने उन्होंने उम्मीद नहीं की होगी। फ़िल्म में अरशद फुल टू ओवर एक्टिंग के मूड में लगे है। फ़िल्म में जितना बेवकूफी वाला उनका किरदार था उतनी ही लापरवाही से उन्होंने निभाया भी। वहीं सोहा ने पुलिस के किरदार में खूब दबंग बनने की कोशिश तो की है, लेकिन दर्शकों को समझ नहीं आता कि वे हँसे कि रोये। उन्होंने भी अपनी तरफ से दर्शकों के सिर में दर्द करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जावेद जाफरी कॉमेडी के किंग रह चुके हैं लेकिन इस फ़िल्म में जावेद के अभिनय को देख कर लगता नहीं हैं कि एक समय पर जावेद को छोटे पर्दे का अमिताभ बच्चन कहा जाता था। इनके अलावा ​शक्ति कपूर,​ मनोज जोशी​, ​ ​हिमानी शिवपुरी​ और विजय राज, इनमें से जिस पर भी कैमरा घूमता हैं वही दर्शकों को थियेटर छोड़ने पर मजबूर कर देता है।

संगीत: फ़िल्म की ही तरह इसके गाने भी एक से बढ़ कर एक सिरदर्द है। 'बंदा हूँ मैं माइंड ब्लास्टिक', 'आई लव संइया जी' जैसे गानों को याद रखना तो दूर देखते और सुनते समय भी यही महसूस करते हैं कि अगर रिमोट होता तो इस तरह के टॉर्चर से बचा जा सकता था।
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