निर्देशक: अभिषेक चौबे
स्टार: ****
'इश्किया' के बाद, कॉमेडी थ्रिलर फ़िल्म 'डेढ़ इश्किया' के लिए निर्देशक अभिषेक चौबे के हुनर और निर्देशन की दाद देनी पड़ेगी। उन्होंने जिस संजीदगी और सावधानी से फ़िल्म का निर्देशन किया वह वास्तव में काबिले तारीफ है। हालाँकि फ़िल्म की कहानी शायद इतना ना लुभाए लेकिन जिस तरह से इसके दृश्यों को प्रस्तुत किया गया है वह दर्शकों को बाँध कर रखने में कामयाब है।
फ़िल्म को बिना किसी तीखे फ़िल्मी मसाले और लाग-लपेट के बनाया गया है, जो एक ठहराव के साथ आगे बढ़ती है। साथ ही अगर इसकी 'इश्किया' के साथ तुलना की जाए तो यह उस से बेहतर बनी है। फ़िल्म के दृश्य, डायलॉग्स, अभिनय और संगीत सभी बेहद मनोरंजक है। साथ ही फ़िल्म में अरशद वारसी और नसीरुद्दीन शाह की हास्य जुगलबंदी बेहद कमाल की है। जब दोनों साथ में होते है तो बहुत हंसाते है।
कहानी: फ़िल्म की कहानी दो देहाती और बेफिक्र चोरों बब्बन (अरशद वारसी) और उनके खालूजान (नसीरुद्दीन शाह) की हैं जो एक हार चुराते हैं लेकिन तभी इनपर इनका कोई पुराना विरोधी जो एक जापानी गैंगस्टर है, हमला कर देता है, अब खालूजान तो हार लेकर भागने में कामयाब हो जाता है लेकिन बब्बन को गैंगस्टर पकड़ लेता है, और जब वह गैंगस्टर को यकीन दिलाता है कि हार उसके पास नहीं है, तो वह उसे छोड़ देता है। वहीं खालूजान भाग कर महमूदाबाद पहुंच जाता है। जहाँ बेगम पारा (माधुरी दीक्षित) ने अपने लिए शौहर, और महमूदाबाद के नवाब की तलाश में एक खुला मुशायरा रखा है । जिसमें खालूजान इफ़्तेख़ार के नाम से शामिल हो जाता है। जहाँ वह जाता तो है बड़ा हाथ मारने लेकिन धीरे-धीरे बेगम पारा के प्रेम में गिरफ्त हो जाता है। वहीं बेगम भी इफ़्तेख़ार के शायराना अंदाज को नजरअंदाज नहीं कर पाती। लेकिन इनके बीच एक बहुत बड़ी समस्या है जान मोहम्मद (विजय राज), खुद नवाब बनना चाहता है। वहीं बब्बन इफ़्तेख़ार को टीवी पर देखकर महमूदाबाद पहुंच जाता है । और वहाँ जाकर बब्बन भी बेगम पारा की बेहद खास सहेली मुनिया (हुमा कुरैशी) के साथ प्रेम में पड जाता है। अब शुरू होती है बब्बन और इफ्तेखार की इश्क की कहानी। लेकिन यह कहानी उस वक़्त अचानक से पटरी से नीचे खिसक जाती हैं जब बेगम पारा महमूदाबाद के नवाब के नाम की घोषणा करती है। आगे क्या होता है यह आपको फ़िल्म देख कर ही पता करना होगा।
अभिनय: नसीरुद्दीन शाह का अभिनय अपने आप में बेमिसाल है। और रही डेढ़ इश्किया में अभिनय की बात तो नसीरुद्दीन ने फिल्म में एक बार फिर लाजवाब अभिनय किया है। वह फ़िल्म में एक मामूली चोर से लेकर नवाब के शाही अंदाज तक बेजोड़ है। वहीं फ़िल्म में उन्होंने जिस अंदाज में उर्दू भाषा और शायराना अंदाज को जिया हैं वह भी बेहद उम्दा है। नसीरुद्दीन के बाद बात करते हैं अरशद वारसी की हालाँकि अभी तक उन्हें अकेले दम अभिनय के लिए फिल्मों में ज्यादा मौका नहीं मिला है, लेकिन फ़िल्म में दूसरे अभिनेता के साथ उनकी केमिस्ट्री अतुलनीय है। और इस बार उनके लिए ये परीक्षा और भी कड़ी थी क्योंकि इस बार वह एक ऐसे कलाकार के साथ काम कर रहे थे जो अभिनय के क्षेत्र में बहुत आगे निकल चुके है। खैर बावजूद इसके अरशद ने एक बार फिर यह साबित किया हैं कि उनके इस किरदार में उनकी जगह किसी और के बारे में सोचना भी फ़िल्म की गुणवत्ता को लेकर नाइंसाफी होती। फ़िल्म में अरशद वारसी ने भी एक बिंदास चोर की भूमिका निभाई है, जो अपने चोर के अंदाज और गेटअप में बेहद जमे है। वहीं फ़िल्म में बॉलीवुड की एक बेहद खूबसूरत और बेहतरीन अभिनेत्री माधुरी को एक बार फिर से देखना काफी रोमांचक था और उनकी उपस्थिति ही फ़िल्म के लिए काफी है। लेकिन हुमा कुरैशी माधुरी की सहेली के रूप में जो किरदार निभाया है, उस से उन्होंने अपने लिए निर्देशकों के द्वार खुलने की संभावनाए बना ली है। हुमा ने साबित किया हैं कि वह भी एक उम्दा अभिनेत्री बनने का दम रखती है। वहीं विलेन के रूप में विजय राज को भी काफी महत्वपूर्ण और जोरदार किरदार सौंपा गया था जिसे निभाने के लिए उन्होंने अपनी सारी ताकत झौंक दी है। इनके अलावा मनोज पाहवा और रवि गोसाईं भी फ़िल्म में अपने किरदार के अनुसार अच्छी उपस्थिति दर्ज करा गये है।
संगीत : फ़िल्म में संगीत भी, फ़िल्म की कहानी की ही तरह बेहद व्यवहार-कुशल और विवेकशील है। माधुरी पर फिल्माया गाना 'हमरी अटरिया पर' एक बार फिर से माधुरी और ऐश्वर्या के संयोजन वाला 'देवदास' का डोला रे की याद दिलाता है। वहीं नसीरुद्दीन पर फिल्माई गई राहत फ़तेह अली खान की गई ग़ज़ल 'ना बोलू तो कलेजा फूंके' का कोई जवाब नहीं है। इसके अलावा दिल का मिजाज इश्किया भी सुनने में मधुर गाना है।