नसीरूद्दीन ने कहा, "यह देखकर वाकई फिक्र होती है कि कला की नैतिकता का निर्धारण आज कहां जा पहुंचा है। पिछले 10-12 सालों से हम जो कुछ देख सुन रहे है, काफी चिंता की बात है। यहां हर कोई आपत्ति के सवाल खड़े कर सकता है, यह भयानक है। सबकुछ राजनीति से प्रेरित है। मंटो के समय में ऐसी बातों का हमें पता ही नहीं था।"
उन्होंने कहा, "कम से कम किसी की मेहनत को काम को ऐसे सार्वजनिक रूप से जलाया नहीं जाता था। उन्हें सड़कों पर घसीटा नहीं जाता था। उनकी मेहनत को इस तरह बर्बाद नहीं किया जाता था। उन पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता था। उन्हें भागना नहीं पड़ता था।"
नसीरूद्दीन ने भारतीय दंड संहिता की धारा 292 में उल्लिखित प्रावधान 'कला में अश्लीलता का प्रदर्शन दंडणीय' पर बोलते हुए कहा कि इस तरह का कानून कोई कपटी ही बना सकता है।