सेलीना समलैंगिकों के अधिकारों के लिए काम करती हैं। अपने पति और जुड़वा बच्चों के साथ इस समय सिंगापुर में रह रहीं सेलीना को अदालत के इस फैसले पर विश्वास नहीं हो रहा है।
उन्होंने कहा, "देश की माननीय अदालत ने याचिका इसलिए खारिज कर दी, क्योंकि उन्होंने इसका कोई औचित्य नहीं पाया। कोई औचित्य नहीं? यहां लाखों जिंदगियां दांव पर लगी हैं और अदालत को याचिका में कोई औचित्य नजर नहीं आता?"
उन्होंने आगे कहा, "समलैंगिक लोगों को यह कहकर दोषी करार नहीं दिया जा सकता कि वे प्रकृति के विरूद्ध हैं। यह कौन तय करेगा कि प्रकृति के अनुरूप क्या है और क्या नहीं? मेरे हिसाब से तो बालविवाह और वैवाहिक दुष्कर्म अप्राकृतिक हैं।"
सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार, गैर सरकारी संस्था नाज फाउंडेशन और दूसरी संस्थाओं द्वारा दाखिल याचिका खारिज कर दी, जिसमें 11 दिसंबर 2013 को दिए गए अदालत के फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की गई थी।
अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि समलैंगिकता एक अपराध है।
न्यायमूर्ति एच. एल. दत्तू और न्यायमूर्ति सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।
हालांकि सेलीना को अब भी उम्मीद है। उन्होंने कहा, "मैं आशा करती हूं कि संसद इस मुद्दे पर चर्चा करेगी और सभी राजनीतिक पार्टियां अपने राजनीतिक और धार्मिक स्वार्थ को परे रखकर संविधान में उल्लिखित जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा के लिए एकजुट होंगी।"
सेलीना ने कहा कि वह समलैंगिक समुदाय के लोगों के साथ हैं। उन्होंने कहा, "समलैंगिक समुदाय के लोगों की स्वतंत्रता का यह हनन है, कि यदि वे अपनी पसंद का साथी चुनते हैं तो उन पर मुकदमा चलाया जाएगा। इससे बड़ा अन्याय क्या हो सकता है?"