माधुरी ने यहां एक साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया, "फिल्मोद्योग अब ज्यादा व्यवस्थित और संगठित हो गया है, लेकिन यकीनन बहुत दबाव है और लोगों मे संयम कम हैं। नई पीढ़ी इसके लिए पूरी तरह तैयार है और वे आज ज्यादा टिप-टॉप है..पहले ऐसा नहीं था।"
अभिनेत्री ने कहा, "हमने जैसे काम किया, वैसे-वैसे शुरुआत की और सीखा। लेकिन आज के नए अभिनेता-अभिनेत्री आत्मविश्वासी हैं। यह अच्छा है। यकीनन, अच्छा करने का बहुत दबाव है।"
करियर की बुलंदियों के दौरान माधुरी की तुलना उनकी सह-अभिनेत्रियों से की गई, लेकिन वह यह नहीं कह सकतीं कि अब मुकाबला कांटे का हो गया है।
46 वर्षीया दिग्गज अभिनेत्री ने कहा, "यह एक रचनात्मक संसार है। हर कोई वही कर रहा है जिसमें वह सर्वश्रेष्ठ है। वे अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि कोई एक आदमी फिल्मोद्योग पर हुकूमत करने जा रहा है, क्योंकि अगर ऐसा होता तो हमारे पास मधुबाला, मीना कुमारीजी, नरगिस दत्तजी सरीखे नाम नहीं होते..और वे सभी एक ही समय में जगमगा रहे थे।"
माधुरी ने वर्ष 1984 में 'अबोध' फिल्म से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने 'तेजाब', 'राम लखन', 'त्रिदेव', 'परिदा', 'दिल', 'सैलाब', 'खलनायक', 'हम आपके हैं कौन' और 'दिल तो पागल है' सरीखी हिंदी फिल्मों से अपने पैर जमाए।
लेकिन हमेशा की तरह जमीन से जुड़ी रहीं। कैसे?
इस सवाल पर माधुरी ने कहा, "इसका श्रेय मेरे माता-पाता को जाता है, क्योंकि उन्होंने जिस तरह मेरी परवरिश की..उनके दिए संस्कार। मेरी मां हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं। यहां तक कि सभी अच्छे और बुरे समय में भी।"
माधुरी शादी के बाद डेनवर जाकर बस गईं। उन्होंने बड़े पर्दे से दूरी बना ली थी।
एक स्नेही मां माधुरी ने कहा, "मैंने कभी अभिनेत्री बनने का सपना नहीं देखा, लेकिन जब बनी तो सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री बनना चाहती थी..लेकिन व्यक्तिगत मोर्चे पर अपना परिवार, बच्चे..मेरे सपना का बड़ा हिस्सा थे, क्योंकि मैं खुद एक बड़े परिवार से हूं।"