फिक्की फ्रेम्स 2014 में प्रेस वार्ता के दौरान शबाना ने संवाददाताओं को बताया, " महेश भट्ट की 'अर्थ' ने मेरी जिंदगी बदल दी। इसके निर्माण के बाद हमने फिल्म वितरकों व निर्माताओं को दिखाई। उन्हें फिल्म पसंद आई, लेकिन उन्होंने हमसे फिल्म के आखिरी दृश्यों को बदलने की मांग की। लेकिन मैंने और महेश ने फिल्म का अंत बदलने से इंकार कर दिया। इसके बाद फिल्म ने व्यवसायिक और कलात्मक दोनों रूप में सफल साबित हुई।"
'अर्थ' के अंत में शबाना की किरदार अपने बेवफा पति को छोड़ देती है और नई शुरुआत करती है, जो 1980 के दशक की फिल्मों के लिए असाधारण बात थी।
शबाना ने कहा, "मुझे लगता है कि यहां कुछ बदलाव हुआ है, खासतौर से नए निर्माता कुछ असाधारण फिल्में बना रहे हैं, विशेषकर जिस तरह पुरुष महिलाओं को सम्मान दे रहे हैं।"
इस सत्र में अनुपम खेर, मधुर भंडारकर, अयान मुखर्जी, सुभाष घई और अमोल गुप्ते सरीखी हस्तियों के साथ लिज शेकलेटन भी मौजूद थे।
अनुपम खेर ने भी इस दौरान सारांश का जिक्र किया। उन्होंने कहा, "महेश भट्ट की 'सारांश' ने मेरी जिंदगी बदल दी। मैं उस समय 27 साल का था और 65 साल के व्यक्ति का किरदार किया था। 'मैंने गांधी को नहीं मारा' जिसमें मैंने अल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति का किरदार किया था, अब तक का सबसे कठिन किरदार रहा।"
इस बीच, फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर ने कहा कि उनकी असफल फिल्म 'त्रिशक्ति' ने उनकी जिंदगी बदल दी।
उन्होंने बताया, "लोगों को लगता है कि चांदनी बार मेरी पहली फिल्म थी, लेकिन मैं कहूंगा कि 'त्रिशक्ति' मेरी पहली फिल्म थी।"
"लेकिन वह 'त्रिशक्ति' की असफलता है जो मैं इस मंच पर साझा कर रहा हूं। इसके बाद मैंने 'चांदनी बार' बनाई और यही एक फिल्म है जिसने मेरी जिंदगी बदल दी।"