किताब की लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर ने भी उनका समर्थन करते हुए कहा, "हमें अभिनेत्री के निजी जीवन का सम्मान करना चाहिए और अपनी हद नहीं पार करनी चाहिए। हम सब उनके काम के लिए उनसे बेहद प्यार करते हैं, न कि उनके निजी रिश्तों और निजी मसलों के लिए।"
गुरुदत्त के आत्महत्या कर लेने के बारे में वहीदा ने कहा कि इस बारे में कोई नहीं जानता कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? वहीदा ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि फिल्म 'कागज के फूल' की असफलता की वजह से वह अवसाद में थे, क्योंकि उसके तुरंत बाद उन्होंने 'चौदहवीं का चांद' बनाई, जो सुपरहिट हुई।"
गौरतलब है कि गुरुदत्त 10 अक्टूबर, 1964 को अपने अपार्टमेंट में मृत पाए गए थे।