दिशा: नितेश तिवारी
रेटिंग: ** 1/2
चुनावों के सीजन में सिने धरा पर उतरी यह फिल्म पूरी तरह से एक चुनावी गलियारों पर आधारित फिल्म है जिसे देख कर लगता है कि निर्माता-निर्देशक इस चुनावी दौर को सिने-जगत के माध्यम से भुनाना चाहते है। यानी कि चुनावों का असर सिर्फ जनता पर ही नहीं बल्कि बॉलीवुड पर भी जमकर हो रहा है। कम से कम इस फिल्म को देख कर तो यही कहा जा सकता है।
हालाँकि ये ना ही तो कोई नई बात है और ना ही ऐसा पहली बार हो रहा है कि फ़िल्मी पर्दे पर आम जन जीवन से जुड़े मुद्दों को साकार किया जा रहा है। बल्कि इसके अब से पहले भी पुराने और हालिया कई उदहारण है। लेकिन इस बार 'भूतनाथ रिटर्न्स' के माध्यम से नितेश तिवारी ने एक नया फार्मूला तैयार किया है और जिसमें वह एक सामान्य आदमी को नहीं बल्कि एक भूत को चुनाव में उतारता है।
फिल्मों के सीक्वल के दौर में ये फिल्म भी 'भूतनाथ' का सीक्वल ही है। जिसमें जिसमें कैलाश नाथ यानी भूतनाथ (अमिताभ बच्चन) दोबारा से वापसी करता है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे जब मुक्ति के बाद वह भूतवर्ल्ड में पहुंचता है तो वहां उपस्थित बाकी भूत उनका इस कारण मजाक बनाते है क्योंकि वह धरती पर बच्चों को डराने में कामयाब नहीं हो पाता, जो अगले मनुष्य जन्म के लिए भूत वर्ल्ड की शर्त है। ऐसे में भूतनाथ को दोबारा से धरती पर बच्चों को डराने के लिए भेज दिया जाता है।
लेकिन जब वह इस भौतिक संसार में आता है तो उसे इस बात का अहसास होता है कि आज की पीढ़ी को डराना बेहद मुश्किल हो गया है। लेकिन कुछ भटकने के बाद उसकी मुलाकात एक ऐसे बस्ती में रहने वाले बच्चे अखरोट (पर्थ) से होती है, जो भूतनाथ को देख सकता है। ऐसे में दोनों की दोस्ती हो जाती है। दोनों मिलकर जब बिना योजित सामाजिक कार्य में जुट जाते है ऐसे में जब इनकी मुलाकात एक भ्रष्ट नेता भाऊ (बोमन ईरानी) से होती है तो दोनों पार्टियो के बीच टकराव हो जाता है। जिसमें भूतनाथ भाऊ के खिलाफ राजनीति के मैदान में उत्तर जाता है। अब इसके आगे क्या होता है क्या ये भौतिक समाज एक अदृश्य और मृत व्यक्ति को नेता स्वीकारता है और क्या होता है इसका नतीजा यही कहानी है 'भूतनाथ रिटर्न्स'।
हालाँकि फिल्म की कहानी के बारे में कहा जा सकता है कि यह काफी हद तक मनोरंजक फिल्म है लेकिन साथ ही फिल्म को लेकर एक जो पूर्वानुमान और सोच है वह एक कॉमेडी और हल्की फुलकी फिल्म की है। लेकिन जब फिल्म को देखते है तो पता चलता है कि यह एक राजनीतिक आधार वाली फिल्म है। जो एक अच्छा सन्देश भी देती है।
लेकिन फिल्म एक भ्रम भी पैदा करती है। जहाँ इसे पहली फिल्म 'भूतनाथ' के आधार पर एक बच्चों के मनोरजंन के तौर पर परखा जा रहा है। इस कसौटी पर फिल्म पूरी तरह से सटीक नहीं बैठती। यानी कि इसे पहली फिल्म की तरह बच्चों के लिय नहीं माना जा सकता।
फिल्म का संगीत जाहिर तौर पर मनोरंजक है फिल्म के गाने पहले ही अपनी अच्छी पहचान बना चुके है खास तौर पर हनी सिंह और बिग बी की जुगल बंदी वाला गाना 'पार्टी तो बनती है' बेहद लोकप्रिय हो चुका है। जिन्हें फिल्म में बेहद चतुराई से फिट किया गया है।
अगर अभिनय की बात की जाए तो बिग बी का अभिनय हमेशा की तरह ही अनुभव की आंच में पका हुआ है। उनके अभिनय पर सवालिया निशान नहीं लगाया जा सकता। वहीं अखरोट बने पर्थ को देख कर कहा जा सकता है कि वह जन्मजात ही अभिनय लेकर पैदा हुए है। वह आत्मविश्वास और ऊर्जा से भरपूर है। वहीं भ्रष्ट नेता के रूप में बोमन ईरानी काफी दमदार रहे है। भले हुई उन्होंने अपना फ़िल्मी करियर काफी देर से शुरू किया हो लेकिन उनमें प्राकृतिक अभिनय कूट-कूट कर भरा है।