निर्देशक : मंजीत मान
स्टार: 2
काफी मंझे हुए कलाकार और पंजाबी संगीत के बादशाह गुरदास मान काफी समय के बाद बड़े पर्दे पर दिखे है। फिल्म एक पारिवारिक ड्रामा है। जिसे बेहद सहज तरीके से फ़िल्माया गया है। जहाँ फिल्म में नए और मंझे हुए कलाकारों का अभिनय संतुष्टि पूर्ण है वहीं फ़िल्म की कहानी अनिल कपूर और काजोल की 1999 में आई फिल्म 'हम आपके दिल में रहते है' से मिलती जुलती सी है। इसलिए कहा जा सकता है कि फ़िल्म की कहानी में ऐसा कुछ खास नया नहीं है।
अगर फिल्म के निर्देशन की बात की जाए तो साई प्रोडक्शन हाउस तले गुरदास मान की पत्नि मंजीत मान के निर्देशन बनी फ़िल्म निर्देशन के मामलें में कमज़ोर दिखाई पड़ती है। कहा जा सकता है कि यह उनकी पहली फ़िल्म है, और अनुभव की कमी है। फिल्म को पंजाब, चंडीगढ़ और दिल्ली के आस पास के क्षेत्रों में फिल्माया गया है।
फिल्म की कहानी चार भाइयों के इर्द गिर्ध घूमती है। जिनमें गुरदास मान बड़े भाई है और उनके तीनों छोटे भाइयों बिब्बा (मानव विज), चन्नी (राज झिंगर) और दीप (जस्सी गिल) की सारी जिम्मेदारी उनके सर पर है। जहाँ बड़े भाई का सपना छोटे भाई के घर बसे हुए देखना है वहीं छोटे भाई भी चाहते है कि उनके उदास रहने वाले भाई के जीवन में भी कोई आ जाए। वहीं दूसरी और नीरू बाजवा जिनके पिता की सारी जमीन उनके ताऊ ने हथिया ली है। ऐसे में जब ये दो जरूरत मंद लोग आपस में मिलते है तो जरूरत के अनुसार ही सही लेकिन आपस में एक रिश्ता बन जाता है।
बड़ा भाई छोटों की ज़िद्द पर शादी तो कर लेता है लेकिन वह सिर्फ़ उनकी भाइयों की नज़र में ही शादी है। असलियत तो सिर्फ बड़ा भाई और नीरू ही जानते है कि यह सिर्फ़ एक तीन महीने का कॉन्ट्रैक्ट है जो इस अवधि के बाद खुद बा खुद खत्म हो जाएगा। ऐसे मेँ क्या होता है जब ये राज़ तीनोँ छोटे भाईयों पर खुलता है। बस यही कहानी है 'दिल विल प्यार व्यार की।
फिल्म की कुछ चीजें है जहाँ दृश्य किसी घर पर आधारित है, वहीं अचानक से कुछ दृश्यों में होटल की झलक साफ़ दिखाई देती है। दृश्यों में दिखाई जाने वाली चीजें जो घर से नही बल्कि होटल से संबंधित लगती है अप्राकृतिक सी प्रतीत होती है। फिल्म के कुछ दृश्यों का क्रम अजीब भी लगता है। फिल्म के कुछ दृश्य बहुत पकाऊ है।
फिल्म के कुछ दृश्य ऐसे भी है जिनके क्रम कुछ अज़ीब और अटपटे से लगते है। जैसे जब गुरदास मान का एक दोस्त उन्हें सलाह देता है कि तुम कॉन्ट्रैक्ट मैरिज कर लो और फ़िर वह अचानक से अपने ऑफिस में आइ नई-नई लड़की नीरू बाजवा के सामने यह प्रस्ताव रख देता है, इसके बाद नीरू बिना सोचे या सवाल किये स्वीकार भी कर लेती है और इसके बाद एकाएक गुरदास मान नीरु को अपनी कहानी बताते है और दोनों कॉन्ट्रैक्ट मैरिज कर लेते है।
फिल्म में अगर कलाकारों द्वारा निभाए चरित्रों की बात की जाए तो गुरदास मान फ़िल्म की केंद्रीय भूमिका में थे, जिन्होंने एक बडे और जिम्मेदार भाई, अच्छे मालिक और दृढ निश्चित प्रेमी की अच्छी व्याख्या की है। लेकिन साथ ही उनकी सह-अभिनेत्री के किरदार में निरू बाजवा बहतरीन रही। बाकी के किरदार भी अपनी जगह ठीक ठाक थे। लेकिन साथ ही एक और किरदार है जिसका खास जिक्र करना होगा जो कुछ फ़िल्म के जिस भी दृश्य में आते है रोमांच पैदा करते है और वह है राजीव ठाकुर, जिन्होंने फ़िल्म में गुरदास मान के सहायक की मनोरंजक भूमिका निभाई है।
फिल्म का संगीत लाजवाब है। गुरदास मान के गाए गीत 'मैं लजपाला ते लड़ लगियां', 'तेरी आँखा नु सलाम्मा हुंदियां' में उनकी आवाज़ कानों में गूंजने लगती है। इसके अलावा भी गुरदास मान, जस्सी गिल और सुनिधि चौहान की आवाज़ से सजे डांसिग ट्रैक अच्छे है।