यदि किसी फिल्म में वह निर्देशक हैं, तो वह सिर्फ और सिर्फ फिल्म के निर्देशन पर ही ध्यान देते हैं और यदि वह फिल्म के निर्माता हैं, तो कभी निर्देशक के काम में टांग नहीं अड़ाते।
एक साक्षात्कार में शाह ने कहा, "यदि मैं निर्माता होता हूं, तो मैं सिर्फ निर्माता की हैसियत से ही फिल्म निर्माण में दखल रखता हूं। जब निर्देशक होता हूं, तब निर्माण से जुड़े मसलों के बारे में नहीं सोचता।"
उन्होंने कहा, "जब मैं निर्माता होता हूं तो निर्देशक बनने के बारे में नहीं सोचता। मेरी फिल्मों के निर्देशक कभी यह शिकायत नहीं करेंगे कि मैं उनका दिमाग खाता हूं या उनके काम में दखल देता हूं।"
'नमस्ते लंदन' और 'वक्त: द रेस अगेंस्ट टाइम' जैसी फिल्में बना चुके शाह ने कहा, "एक निर्माता के रूप में मेरा काम बहुत अलग होता है। निर्देशक फिल्म का जनक होता है, जो फिल्म का सृजन करता है, जबकि निर्माता फिल्म का पिता होता है, जो फिल्म की बाकी जरूरतें पूरी करता है। मैंने दोनों भूमिकाएं निभा चुका हूं।" शाह अनीस बज्मी निर्देशित 'सिंह इज किंग' और निशिकांत कामत निर्देशित 'फोर्स' के निर्माता रहे हैं।
निर्माता के रूप में सफलता हासिल करने के बावजूद शाह को लगता है कि निर्माता की भूमिका बेमतलब की होती है। उन्होंने कहा, "हां एक तरह से देखा जाए तो यह फालतू का काम है। लेकिन, सिर्फ निर्माता ही नहीं पर्दे के पीछे काम करने वाले हर कलाकार का काम बेमतलब ही होता है, क्योंकि अंत में दर्शक उनके लिए ही फिल्म देखने आते हैं, जो पर्दे पर दिखाई देते हैं।"