​​​फिल्म समीक्षा: 'फिल्मिस्तान'-सिने-प्रेमियों के लिए एक ताज़ा हवा का झौंका

Friday, June 06, 2014 22:16 IST
By JD Ghai, Santa Banta News Network
फिल्म समीक्षा: 'फिल्मिस्तान'-सिने-प्रेमियों के लिए एक ताज़ा हवा का झौंका

स्टार कास्ट: ​शारिब हाशमी​, ​इनामुलहक़​, कुमुद मिश्रा​

​ निर्देशक: नितिन कक्कड़

​ रेटिंग:***1/2

​​हर एक क्षेत्र की ही तरह, सिने-क्षेत्र में भी जोश और जूनून ऐसे घटक हैं, जो उसके लिए बहुत मायने रखतें हैं। वहीं एक आत्मविश्वासी ​ ​कलाकार का अभिनय फ़िल्मी भूख रखने वाले दर्शकों के लिए एक ​असाधारण कॉकटेल का काम करता है।

​​ ​कहा जा सकता है कि 'फिल्मिस्तान' भी ऐसी ही एक फिल्म है। हो सकता कि फिल्म बेहद सधे हुए बजट और नए चेहरों के चलते शायद दूसरी फिल्मों से कुछ अलग ना कर पाए और अच्छी शुरुआत पाने के लिए ​भी ​बाध्य​ना हो।

​'फिल्मिस्तान'​ एक फिल्मों के हद से ज्यादा शौक़ीन या यूँ कहिये कि एक फ़िल्मी-कीड़े और एक महत्वाकांक्षी अभिनेता सनी अरोड़ा (​शारिब हाशमी) की कहानी है। जो फिल्म में सिर्फ एक मौके की तलाश में है। हालाँकि सेकंडों ऑडिशंस देने के बाद भी वह सफल नही हो पाता।आख़िरकार उसे एक अवसर मिलता तो है, लेकिन पर्दे पर काम करने का नहीं बल्कि एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए सह-निर्देशक का। इस फिल्म का निर्माण राजस्थान की खुली सीमा पर एक अमेरिकन टीम कर रही है।

​एक दिन शाम को शूट के बाद, ​एक इस्लामी आतंकवादी समूह सनी का अपहरण ​कर लेता है। ​​जब इस आतंकवादी दल के नेता को पता चलता है कि उनके ये अयोग्य साथी अमेरिकन क्रू मेंबर की जगह गलती से सनी को उठा लाएं हैं, तो वह अपना लक्ष्य पूरा ना होने तक उसे बंधक बना कर रखने का फैंसला करते है। साथ ही अपहर्ताओं ने ​उसे ​बंदूक की नोक ​के दम पर जिस घर में बंधक बना कर रखा है वह पाकिस्तान के एक गांव में स्थित है। उन्होंने वहां सनी पर निगरानी के लिए दो गुर्गों​ ​महमूद (कुमुद मिश्रा) और जव्वाद ​(​गोपाल दत्त​)को छोड़ा हुआ है।​

​फिल्म की कहानी में मजेदार मोड़ तब आता है जब घर के मालिक का बड़ा बेटा आफताब (इनामुलहक़)​ घर वापिस आता है। ​​आफ़ताब अपने परिवार के समर्थन के लिए बॉलीवुड फिल्मों की चोरी में लिप्त है। वहीं अपने मिलनसार व्यक्तित्व ​के चलते सनी ​उस घर और गांव के सभी लोगों के दिलों ​को ​जीत​ लेता है।

​​वहीं आफ़ताब के खुद भी बॉलीवुड फिल्मों का बहुत बड़ा फैन होने के नाते, सनी से दोस्ती हो जाती है। अब उसके छोड़ देने के सिर्फ 5 ​दिन बचें हैं, और बावजूद इसके वह वहां से भागने की कोशिश करता है। लेकिन जल्दी ही उसे पकड़ लिया जाता है। लेकिन वह फिर भी आशा नही छोड़ता और लोगों को अपने अनोखे व्यक्तित्व में व्यस्त रखता है।

जब उसका सहयोगी आफ़ताब सनी को ​आतंकवादियों के चंगुल​ से छुड़ाने ​ ​का वायदा करता है। तो उसका कैमरा भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वे दोनों स्थानीय प्रतिभाओं को लेकर एक फिल्म शूट करने का फैंसला करते है। उनके इस चंगुल में महमूद भी फंस जाता है।

​​​हालाँकि जब उनका मुखिया वापिस आता है, और उसे अपनी अनुपस्थिति में सनी के निडर और निर्भय होकर रहने की जानकारी मिलती है तो सनी की यह योजना भी विफल हो जाती है। ​​इसके बाद जब इनामुलहक़ के पिता सनी के लिए माफी का अनुरोध करता है ​, तो ​उनका ​नेता​ सनी को वापिस सीमा पार छुड़वाने के लिए तैयार हो जाता है। वह तैयार हो जाता है कि आफ़ताब उसे सीमा के पार छोड़ कर आ जाएगा। हालाँकि यह बेहद उत्तेजक चरमोत्कर्ष के बाद ही संभव हो पाता है।

​फिल्म को बेहद अच्छे से बनाया गया है, और यह अपनी सुगढ़ कहानी, सिनेमेटोग्राफी और निर्देशन के लिए लोकप्रियता पाने की हक़दार है।वहीं फिल्म के नाम के हिसाब से शारिब हाशमी द्वारा बोले गए डायलॉग काफी प्रभावी और सुंदर हैं। हालाँकि फिल्म में हंसाने वाले दृश्य काफी सीमित है, लेकिन वे आपको पूरी फिल्म के दौरान​ ​बाँध कर रखने में कामयाब हैं। हालाँकि फिल्म की गति कुछ धीमी और सीमा में बंधी महसूस होती है।

​​​नवोदित ​अभिनेता ​शारिब हाशमी ​का ​अभिनय​ समीक्षकों को आकर्षित करेगा​, जो सकारात्मक प्रतिक्रिया को मिलने के लिए बाध्य कर देता है। ​वहीं इनामुलहक़ और गोपाल दत्त बेहद वास्तविक लगें हैं, जो अपने किरदार में पूरी तरह से ढल गए हैं। वहीं कुमुद मिश्रा का खास तौर पर ज़िक्र करना होगा उन्होंने बेहद उम्दा अभिनय का उदाहरण दिया है।

फिल्म को इसके दिलचस्प अभिनय, हास्य और एक बेहतरीन निर्देशन के चलते देखा जाना चाहिए।

​​ ​​​दर्शकों ​की प्रतिक्रिया:
​​ एडलिन मारिया जो अपनी बेटी के साथ फिल्म देखने आई थी वह फिल्म को चार स्टार देती हैं।

​वहीं पदम संधु को फिल्म बहुत पसंद आई और वह इसे 3 ​स्टार देते हैं।
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