निर्देशन: शशांक खेतान
स्टार: **1/2
करण जौहर के बारे में कहा जाता है कि वह 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के फैन हैं। लगता है कि उन्होंने इस फिल्म से अपना उसी फ़िल्म के जैसी फ़िल्म बनाने का अरमान पूरा किया है। हालाँकि फिल्म 'डीडीएलजे' का रीमेक नहीं कही जा सकती, लेकिन ये भी सच है कि यह उस से क़ाफी प्रभावित है। जिसे वरुण धवन और आलिया भट्ट की बेहतरीन केमिस्ट्री और मॉडर्न टच देकर आज़ की युवा पिढी के हिसाब से बनाया गया है।
फिल्म काव्य प्रताप सिंह (आलिया भट्ट) और राकेश शर्मा उर्फ हम्प्टी शर्मा (वरुण धवन) की प्रेम कहानी है। जिनके बीच में हैं, एनआरआईअंगद (सिद्धार्थ शुक्ला), जिसके साथ काव्या के पिता मि. सिंह (आशुतोष राणा) उसकी शादी कराना चाहते हैं। वहीं अंबाला शहर की बिंदास, फन लविंग और आज्ञाकारी काव्या क़ो अंगद से शादी करने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन उसका एक सपना है और वो ये कि वह शादी सिर्फ करीना जैसे लहंगे में ही करना चहती है, और जिसके लिए वह दिल्ली खरीददारी करने के लिए जाती है। वहां जाकर काव्या की मुलाकात होती है हम्प्टी शर्मा से और हम्प्टी शर्मा के दिल में प्यार का अंकुर फूट जाता है। अब काव्या वापिस अंबाला आ जाती है, और अपनी शादी की तैयारियों में जुट जाती है।
लेकिन काव्या के प्रेम में पागल हम्प्टी भी अपने दोस्तों के साथ काव्या के घऱ अम्बाला ही पहुंच जाता है। और वह काव्या के दिल में भी अपने लिए प्रेम जगाने में कामयाब हो जाता है, लेकिन जब मि. सिंह के सामने दोनों के बीच का राज खुलता है वह इस शादी के बिलकुल ख़िलाफ हों जातें हैं। जिसका कारण है काव्या की बडी बहन स्वाति (महनाज दमानिया) का अपनी मर्जी से शादी करना और फिर उसमें नाकाम हो जाना। इसलिए वह नहीं चाहते कि उनकी छोटी बेटी के साथ भी ऐसा ही कुछ हो।
अब कहानी वही हिंदी फिल्मों के आम पैटर्न पर आ जाती है, एक लड़की है जिसकी कहीं और शादी होने वाली है, लेकिन वह किसी और से प्रेम करती है और उसके पिता नहीं मानते लेकिन उनकी जिद्द है कि मनाना है। और कुछ समय तक थोड़ी अनियंत्रित सी प्रस्थितियोँ के बाद सब कुछ पटरी पर आ जाता है और पिता कहता है, "जा सिमरन ज़ी ले अपनी जिदंगी। बस ये ही है 'हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया' की कहानी।
लेकिन ये भी सच है कि निर्देशक शशांक खेतान ने फिल्म को नईं रेसीपि और तरीके से पेश किया है। फिल्म की कहानी में नया पन ना होने के बावज़ूद यह अंत तक बाँध कर रखने में कामयाब है।
जहाँ तक फिल्म में अभिनय की बात है, तो वरुण धवन और अलिया भट्ट फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं, और अभिनय दोनों को ही जन्मजात मिला है। वरुण धवन के चेहरे के भाव बेहद वास्तविक औऱ प्रभावी लगते हैं। वरुण धवन कमाल के कलाकार हैं। वहीं आलिया भट्ट के भाव भी कमाल के हैं। लेकिन फिल्म जो ख़ास नाम लिया जाना चाहिए वह है, आशुतोष राणा जो काफी लंबे समय के बाद पर्दे पर दिखें हैं और वो भी एक पिता के चरित्र में, उन्हें इस क़िरदार को बेहद उम्दा तरीके से निभाया है। दादी के रूप में जसवंत दमन और मां के रूप में दीपिका अमीन भी बहुत शानदार थी। वहीं वरुण के पिता की भूमिका में केन्नी देसाई अपनी छाप छोड़ते हैं। उनके अलावा फिल्म के बाकी कलाकारोँ ने भी अपने-अपने किरदार में अच्छा साथ निभाया है।
फिल्म का संगीत वास्तव में बहुत अच्छा है। जो पहले ही काफी लोकप्रियता बटोर चुका है। खासकर फिल्म का गाना 'मैं तैनू समझावा की'। इस गाने को काफी पसंद किया गया है। कुल मिला कर देखा जाए तो फिल्म एक बारगी मनोरजंन का बेहतर साधन है।