सितंबर 2000 में वे क्रन्तिकारी लोग, जो मणिपुर को एक अलग स्वतंत्र समाजवादी राज्य बनाने की मांग कर रहे थे, उन्होंने मणिपुर में हिंदी, हिंदी फिल्मों और टीवी शोज़ पर रोक लगा रखी है। यहाँ तक कि उन्होंने छापे मार कर हिन्दी फिल्मों की हजारों वीडियो कैसेट को भी जब्त कर लिया। और इसी के चलते सैकड़ों की संख्या में हिंदी सिनेमा घरों को बंद करना पड़ा।
असम के एक फिल्म निर्माता उत्पल बोरपुजारी का कहना है, "आजकल के भूमंडलीकृत संसार में, इस तरह के प्रतिबंधों का कोई मतलब नहीं बनता। क्योंकि आज नेटवर्किंग के द्वारा किसी भी भाषा की फिल्म तक पहुंचा जा सकता है। इसलिए किसी भी एक भाषा या संस्कृति की फिल्म को बंद करवाना कोई अकलमंदी वाली बात नहीं है।
अगर 'मैरी कॉम' मणिपुर में प्रदर्शित हो जाती है तो, यहाँ लोगों को यह पता चलेगा कि कैसे उन्ही के बीच के किसी इंसान को कितने बड़े पैमाने पर जाना जा रहा है। और सिर्फ 'मैरी कॉम' ही क्यों किसी भी भाषा की फिल्म की स्क्रीनिंग हर उस जगह होनी चाहिए जहाँ इसके लिए व्यापार की संभावनाएं हो। यहाँ तक कि अगर कोई सिर्फ बहस के लिए यह कहता है कि बॉलीवुड फ़िल्में मणिपुर पर बुरा प्रभाव डालती है, तो इसका मतलब है, क्या मणिपुर की संस्कृति इतनी कमजोर है कि यह किसी भी फिल्म से प्रभावित हो सकती है। इसके लिए यही बेहतर होगा कि इसका फैंसला लोगों पर रहने दो।"