निर्देशन: होमी अदाजानिया
रेटिंग 3.5
आजकल किसी फिल्म को देखने के बाद उसके बारे में ज्यादातर जो राय होती है वह यह कि फिल्म की कहानी में कुछ भी नया नहीं है। लेकिन होमी अदजानिया की 'फाइंडिंग फैनी' के बारे में कहा जा सकता है कि इसकी कहानी बेहद अलग और लीग से हटकर है। यह बेहद अजीबो गरीब घटनाओं, चरित्रों और कहानी वाली मनोरंजक फिल्म है।
फिल्म की कहानी गोवा के एक छोटे से गाँव पाकोलिम की है, जिसमें बेहद अजीबो-गरीब और लक्ष्यहीन लोग बेहद नीरस जिंदगी बिता रहे हैं और इन्ही में से पांच हैं, पोस्टमैन फर्डी (नसीरूद्दीन शाह), एक जवान विधवा एंजी (दीपिका पादुकोण), रोजी (डिंपल कपाडिया), मशहूर पेंटर डॉन पेड्रो (पंकज कपूर) और सेवियो डी गामा (अर्जुन कपूर) हैं। इनकी जिदंगी को एक मकसद मिल जाता है जब फर्डी को 40 साल पुराना खत वापिस मिलता है। ये खत उसने अपनी प्रेमिका स्टेफैनी फर्नांडिस (अंजली पाटिल) को 40 साल पहले लिखा था और अपने प्रेम का इजहार किया था। जब उसका जवाब नहीं आया तो फर्डी ने इसे स्टेफैनी का इंकार समझ लिया था। लेकिन जब यह खत उसे इतने साल बीतने के बाद मिलता है तो उसे पता चलता है कि उसकी प्रेमिका को तो यह खत मिला ही नहीं और इसके बाद वह स्टेफैनी से मिलने और उसके बारे में जानने के लिए बैचेन हो जाता है। उसकी इस बैचेनी को खत्म करने और स्टेफैनी को ढूंढने में उसका साथ देने के लिए तैयार हो जाती है एंजी। जिसके बाद ये रोजी और सेवियों भी इसमें शामिल हो जाते हैं। फ़र्दी की प्रेमिका यानी फैनी को ढूंढने के लिए की जाने वाली यह यात्रा बेहद मनोरंजक है, जिसमें हर चरित्र की जिंदगी में कई टि्वस्ट आते है।
अगर फिल्म की लोकेशन और दृश्यों की बात की जाए तो निर्देशक ने फिल्म की कहानी के हिसाब से एक दम सटीक लोकेशन प्रयोग की है, जो कहानी के साथ घुल सी गई है। हालाँकि फिल्म की कहानी कहीं-कहीं बोर सी भी महसूस होती है, लेकिन कुल मिलाकर उन फिल्मों से अलग है जिन्हे देख-देख कर दर्शक ऊब चुके हैं।
जहाँ तक अभिनय का सवाल है, फिल्म का हर कलाकार इसमें मनोरजंन के अवयव जोड़ने में पूरी तरह से सफल है। दीपिका और अर्जुन ने मुख्य भूमिका में एक अच्छी केमिस्ट्री निभाई है। दीपिका को हर किरदार में आसानी से ढलने में महारत हांसिल है। और हर किरदार को निभाने के बाद वह साबित कर देती है, कि इस किरदार में उनके अलावा किसी और को लेना बहुत बड़ी गलती होती। अर्जुन कपूर ने जो अजीब भूमिका निभाई है, वह वास्तव में बेहद रोमांचक और अजीब थी।
बाकी डिम्पल कपाडिया को इस तरह के किरदार में सबसे देखना सबसे ज्यादा मनोरंजक बात है। किसी ने उनके इस किरदार की कल्पना भी नहीं की होगी, लेकिन निर्देशक की परख की दाद देनी पड़ेगी जो उन्होंने गंभीर इमेज वाली अदाकारा को ऐसे साँचे में ढाला। पंकज कपूर ने तो बोलती ही बंद कर दी है, जिस भी दृश्य में आते हैं नजरें बाँध देतें हैं और दर्शक भरपूर मनोरंजन करते हैं। नसीरुद्दीन शाह तो अभिनय के महारथी हैं, भला उनके अभिनय में कमी कैसे निकाली जा सकती है, लेकिन इस फिल्म में तो उन्होंने अपने अभिनय के एक अलग ही पहलु को उजागर किया है।
कुल मिलाकर फिल्म मनोरंजन से भरपूर है, और देखने लायक है।