नसीरुद्दीन की आत्मकथा पुस्तक का शीर्षक 'एंड देन वन डे' है। इसमें उनकी पहली शादी, बेटी शीबा, पेशेवर जिंदगी के उतार-चढ़ाव और उन्होंने अपनी पत्नी रत्ना को शादी के लिए कैसे राजी किया, का जिक्र है।
नसीरुद्दीन ने एक साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया, "मैंने इसे एक राज की तरह नहीं रखा। मुझे लगा कि इसे कभी पूरा नहीं कर पाऊंगा।" 'एंड देन द वन डे' यूं ही नहीं लिखी गई, बल्कि यह किताब उनकी ऊब का परिणाम है।
64 वर्षीय नसीरुद्दीन ने कहा, "मैं ऊब गया था, इसलिए इसे लिखना शुरू किया। मैं पूर्व में कई पत्रिकाओं के लिए कुछ लेख लिख चुका हूं और मुझे लेखन में मजा आया। मैंने नहीं सोचा था कि मैं एक पूरी किताब लिखूंगा।"
जब तक उनका मन इसमें रमता रहा, उन्होंने इसे लिखा। नसीरुद्दीन ने कहा, "उसके बाद मैंने इसे छोड़ दिया। उसके बाद सोचा कि इसे लिखने का क्या तुक है। उसके बाद एक या दो साल के अंतराल के बाद, मैंने मुझे प्रभावित करने वाले लोगों के संबंध में अपना अनुभव लिखा तो रत्ना ने कहा कि आप इन सबको क्रम में क्यों नहीं लगा लेते। इसलिए मैंने वैसा किया।"
हालांकि, उन्होंने आत्मकथा में अपनी जिंदगी के प्रत्येक चरण को कालक्रमानुसार लिपिबद्ध नहीं किया है। 'स्पर्श', 'पार' और 'इकबाल' फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले नसीरुद्दीन ने कहा, "मैंने अपनी दूसरी शादी तक की कहानी पूरी की है। लेकिन मुझे नहीं पता कि मैं इसका अंतिम भाग लिखूंगा या नहीं..इसमें कम से कम और 12 साल लगेंगे, लेकिन मैं इस बारे में आश्वस्त नहीं हूं।"
आत्मकथा लिखने के पीछे पत्नी रत्ना प्रेरक शक्ति रहीं? जवाब में नसीरुद्दीन ने कहा, "नहीं, रत्ना नहीं थीं। रत्ना इसे लेकर उत्साहित थीं, लेकिन प्रेरक शक्ति रामचंद्र गुहा थे, जिन्होंने पटौदी (पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान मंसूर अली खान) पर लिखा मेरा लेख पढ़ा और उसे पसंद किया। मुझे उससे बहुत प्रेरणा मिली थी।"