​शशि कपूर को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

Tuesday, March 24, 2015 13:25 IST
By Santa Banta News Network
​रूपहले पर्दे पर अपनी रोमांटिक अदाकारी से लोगों के दिलों को छूने वाले जाने-माने फिल्म अभिनेता शशि कपूर को वर्ष 2014 के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया है।​

​ शशि कपूर को 'दीवार', 'सत्यम शिवम सुंदरम', 'त्रिशूल', 'कभी-कभी' फिल्म में यादगार अभिनय के लिए जाना जाता है। शशि कपूर दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने वाले 46वें व्यक्ति होंगे।​​

​​ इसी महीने अपना 77वां जन्मदिन मना चुके शशि कपूर ने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया है। भारतीय सिनेमा में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें 46वें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।​​

​​ पुरस्कार की घोषणा होने पर उनके भतीजे अभिनेता ऋषि कपूर ने ट्वीट किया, "शशि कपूर को भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया जाएगा। परिवार में अब तीन पद्मभूषण और तीन फाल्के अवार्ड हो गए हैं। इससे पहले यह सम्मान पृथ्वीराज कपूर और राज कपूर को मिल चुका है।"​​

​​ शशि कपूर का जन्म 1938 में हुआ और वह कपूर परिवार से आने वाले जाने-माने अभिनेता हैं। कपूर परिवार से दादा साहेब फाल्के पुरस्कार पाने वाले तीसरे अभिनेता हैं शशि कपूर।​​

​​ शशि कपूर, राज कपूर और शम्मी कपूर के छोटे भाई हैं। शशि कपूर चार वर्ष की उम्र से ही अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर के नाटकों में अभिनय करने लगे। 1940 के दशक में उन्होंने बाल कलाकार की भूमिका निभाई। बाल कलाकार के रूप में आग (1948) तथा आवारा (1951) में उनकी भूमिका की सराहना की गई। शशि कपूर ने 1950 के दशक में सहायक निर्देशक का भी काम किया।​​

​​ बतौर नायक 'धर्मपुत्र' शशि कपूर की पहली फिल्म थी। वह 60, 70 और 80 के दशक तक लोकप्रिय अभिनेता बने रहे।​ शशि कपूर भारत के पहले ऐसे अभिनेताओं में से एक हैं जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम किया। उन्होंने कई ब्रिटिश तथा अमेरिकी फिल्मों में काम कर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। इन्होंने इस्माइल मर्चेट एवं जेम्स आईवरी के प्रसिद्ध मर्चेट आईवरी प्रोडक्शन के तहत काम किया जिनमें हाउसहोल्डर (1963), शेक्सपियर वाला (1965), बॉम्बे टाकी (1970), तथा हीट एण्ड डस्ट (1982) जैसी फिल्में शामिल हैं। उन्होंने अन्य ब्रिटिश और अमेरिकी फिल्मों जैसे कि सिद्धार्थ (1972) एवं मुहाफिज (1994) में भी अभिनय किया।​​

​​ 1978 में शशि कपूर ने अपना प्रोडक्शन हाउस 'फिल्म वाला' शुरू किया। इन्होंने जुनून (1978), कलयुग (1981), 36 चौरंगी लेन (1981), विजेता (1982) और उत्सव (1984) जैसी फिल्में बनाई जिन्हें समीक्षकों ने खूब सराहा। उन्होंने अजूबा नाम से फंताशी फिल्म बनाई तथा इसका निर्देशन भी किया। इसमें प्रमुख भूमिका अमिताभ बच्चन तथा ऋषि कपूर ने निभाई।​​

​​ वर्ष 2011 में भारत सरकार ने शशि कपूर को पद्मभूषण से सम्मानित किया। उन्होंने तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने इस अवसर पर उन्हें बधाई दी।​​

​​ नब्बे के दशक में स्वास्थ्य खराब रहने के कारण शशि कपूर ने फिल्मों में काम करना लगभग बंद कर दिया। साल 1998 में प्रदर्शित फिल्म 'जिन्ना' उनके सिने करियर की अंतिम फिल्म थी, जिसमें उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई थी।​​

​​ शशि कपूर ने 1961 में यश चोपड़ा की फिल्म 'धर्म पुत्र' से करियर की शुरुआत की थी, लेकिन उन्हें सफलता मिली 1965 में 'जब जब फूल खिले' से। बेहतरीन गीत, संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की जबर्दस्त कामयाबी ने न सिर्फ अभिनेत्री नंदा को, बल्कि गीतकार, आनंद बख्शी और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी को शोहरत की बुंलदियों पर पहुंचा दिया​​। इस फिल्म की भारी सफलता ने शशि कपूर को भी स्टार के रूप में स्थापित कर दिया।​​

​​ आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। कल्याणजी और आनंदजी के संगीत निर्देशन में आनंद बख्शी रचित सुपरहिट गाना 'परदेसियों से न अखियां मिलाना', 'यह समां समां है ये प्यार का', 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' जैसे गीत श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए। फिल्म को सुपरहिट बनाने में इन गानों ने अहम भूमिका निभाई थी।​​

​​ शशि कपूर ने 100 अधिक फिल्मों में काम किया है। उनके करियर की कुछ अन्य प्रमुख फिल्में हैं- 'प्यार किए जा' (1966), 'हसीना मान जाएगी' (1968), 'प्यार का मौसम', 'कन्यादान' (1969), 'अभिनेत्री' (1970), 'शर्मिली' (1971), 'वचन', 'चोर मचाए शोर' (1974), 'फकीरा' (1978), 'हीरा लाल पन्ना लाल' (1978), 'सत्यम शिवम सुंदरम' (1979), 'बेजुबान', 'क्रोधी', 'क्रांति' (1981), 'घूंघरू' (1983), 'घर एक मंदिर' (1984), 'अलग अलग' (1985), 'इलजाम' (1986), 'सिंदूर' (1987) और 'फर्ज की जंग' (1989)​​
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