'शादी' कल आज और कल!

अभी शादी का पहला ही साल था;

ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था;

खुशियां कुछ यूँ उमड़ रहीं थी;

कि संभले नहीं संभल रहीं थी;

सुबह-सुबह मैडम का चाय लेकर आना;

थोडा शरमाते हुए हमें नींद से जगाना;

वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिराना;

मुस्कुराते हुए कहना कि,

"डार्लिंग चाय तो पी लो, जल्दी से रेडी हो जाओ, आपको ऑफिस भी तो है जाना!"

घरवाली भगवान का रूप लेकर आयी थी;

दिल और दिमाग पर पूरी तरह छायी थी;

सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था;

एक पल भी दूर जीना दुष्वार होता था!

5 साल बाद!

सुबह-सुबह मैडम का चाय लेकर आना;

टेबल पर रख कर ज़ोर से चिल्लाना;

आज ऑफिस जाओ तो मुन्ना को स्कूल छोड़ते जाना;

सुनो एक बार फिर आवाज़ आयी;

क्या बात है अभी तक छोड़ी नहीं चारपाई;

अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना;

मुन्ना की टीचर को खुद ही संभाल लेना;

ना जाने घरवाली कैसा रूप लेकर आयी थी;

दिल और दिमाग पर काली घटा छायी थी;

सांस भी लेते हैं तो उन्ही का ख्याल होता है;

अब हर समय ज़हन में एक ही सवाल होता है;

क्या कभी वो दिन लौट के आयेंगे;

हम एक बार फिर कुंवारे हो जायेंगे!