निर्देशन: यारीव होरोवित्ज
रेटिंग: * * * *
फ़िल्म को 1989 के आस-पास गाजा पट्टी में पुरानी इन्तिफादा की ऊंचाई पर शूट किया गया है। फ़िल्म में इजरायल और फिलीस्तीन के निरर्थक संघर्ष को दर्शाया गया है। इसमें युवा रंगरूटों की एक कंपनी को गाजा में ड्यूटी पर तैनात किया जाता है। जहां एक दिलेर कमांडर (एन्जिल बोनानी) और एक सफ़ेद उच्च पदाधिकारी उन्हें शपथ के नियमों से अवगत कराते है। उनका काम है, विद्रोह का कोई भी संकेत दिए बिना व्यवस्था को बहाल करना, जबकि वे सड़कों पर पुलिस को देखते है।
जैसे ही वे अपनी ग़श्त शुरू करते है, युवकों का एक समूह उनके साथ बुरा व्यवहार करता है, जिस से वे उन पर पत्थर फैंकते हुए भागना शुरू कर देते है। जिसके बाद एक ईमारत के ऊपर से एक वॉशिंग मशीन को धक्का देकर एक सैनिक की जान ले ली जाती है। अपराधी बच जाता है और कमांडर निगरानी के लिए ड्यूटी पर दूसरों को ईमारत की छ त पर भेजता है, जहाँ से मशीन को फैंका गया था। यह पूरी डरावनी घटना, सैनिकों के लिए चिंताजनक स्थिति और इस से भी ज्यादा फिलीस्तीनी परिवारकी पीड़ा को साबित करती है।
यह फ़िल्म अपने आप में विवादस्पद हैं और ऐसे ही क्षणो के बारे में चर्चा करती है। लेकिन जैसे-जैसे आप फ़िल्म की स्क्रिप्ट के साथ आगे बढ़ते है। आप इसमें, और इसके पात्रों के साथ बेहद गहराई से खोते चले जाते है। फ़िल्म को मुख्य रूप से इसके चरित्रों और घर परिवारों पर आधारित किया गया है। हालांकि फ़िल्म में कुछ पंक्तिया बेहद परेशान करती है।
यह यारिव होरोवित्जकी की पहली फ़िल्म है। और मैं स्वीकार करता हूँ कि 'रॉक बा-कस्बा' तनाव और तीव्रता पैदा करने के मामले में बहुत प्रभावकारी है।वहीं फ़िल्म कुछ हिस्सों में भावुक भी हो जाती है, जो होना भी चाहिए। एक महिला अपने बेटे को ढून्ढ रही है, जबकि सैनिक अपने बैरक पर वापिस चले जाते है। मृत सैनिक के पिता उस जगह पर आते हैं, जहाँ उनके बेटे कोनिर्दयता सेमारा गया था। जिसे बेहद अच्छे से व्याख्या कर शूट किया गया था।
फ़िल्म के चरमोत्कर्ष पर टॉमर अपराधी को पहचान लेता है और उसे मारता है। मेरे अनुसार, टॉमर का किरदार शुद्ध मणि (मानव) के जैसा है, जो उसे बाद में छोड़ देता है। लेकिन अपराधी जाने से मना कर देता है और एक जीतने वाली मुस्कान के साथ टॉमर के सामने खड़ा हो जाता है। मुझे लगता है कि इसीलिए टॉमर अपने शॉट दाग देता है। फ़िल्म के अंतिम दृश्य में, टॉमर की कंपनी को वापिस बुला लिया जाता है। और उनकी जगह पर नए रंगरूटों को रख दिया जाता है। इसीलिए यह प्रोजेक्ट एक अंतहीन प्रक्रिया में घूमता है।
हमेशा अभिनेता ने कुशल चालाकी के साथ अपने अभिनय का प्रदर्शन किया है। लेकिन फ़िल्म पूरी तरह से योन ट्युमारकिन के इर्द-गिर्द घूमती है। मैं कहना चाहूंगा कि यह एक अद्भभुत प्रदर्शन है। फ़िल्म का कैमरे का काम, 93 मिनट की एडिटिंग, निर्माण और संगीत सभी शानदार है।
पूर्ण रूप नॉक आउट है, 'रॉक बा-कस्बा' इसे जरुर देखना चाहिए