एक बार स्टीवन स्पीलबर्ग एक होटल में डिनर कर रहा था।
एक चीनी फ़ैन उनके पास गया और आटोग्राफ माँगने लगा। स्पीलबर्ग ने उसे दो थप्पड़ मारे और कहा,"तुम लोगों ने पर्ल हार्बर पर बम फेका था मैं तुम्हे कोई ऑटोग्राफ नहीं दूंगा, भागो यहाँ से।" चीनी: वो हम नहीं थे वो तो जापानी थे। स्पीलबर्ग: चीनी, जापानी और ताईवानी सब एक ही हैं। चीनी: तुमने भी तो टाइटॅनिक को डूबा दिया था उसमें मेरे परदादा थे। स्पीलबर्ग: अरे, वो मैं नहीं था वो तो आइसबर्ग था। चीनी: आइसबर्ग, स्पीलबर्ग, कार्ल्सबर्ग सब एक ही हैं। |
एक बार एक सास ने बहु से पूछा, "बहु फ़र्ज़ करो अगर तुम पलंग पर बैठी हो और मैं भी उस पलंग पर आकर बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी?" बहु: सासू माँ मैं वहाँ से उठ कर सोफे पर बैठ जाऊँगी। सास: अगर मैं भी सोफे पर आकर बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी? बहु: जी मैं फर्श पर चटाई बिछाकर उस पर बैठ जाऊँगी। सास: अगर मैं भी चटाई पर आकर बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी? बहु: जी मैं ज़मीन पर बैठ जाउंगी। सास: अगर मैं भी ज़मीन पर बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी? बहु: जी मैं ज़मीन में गड्ढा खोदकर उस में बैठ जाऊँगी। सास: अगर मैं भी गड्ढे में बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी? बहु: जी मैं ऊपर से मिट्टी डाल दूंगी! |
एक बार जीतो की सास ने उससे पूछा, " बहु फ़र्ज़ करो अगर तुम पलंग पर बैठी हो और मैं भी उस पलंग पर आकर बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी?"
जीतो: सासू माँ मैं वहां से उठ कर सोफे पर बैठ जाऊँगी। सास: अगर मैं भी सोफे पर आकर बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी? जीतो: जी मैं फर्श पर चटाई बिछा कर उस पर बैठ जाऊँगी। सास: अगर मैं भी चटाई पर आकर बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी? जीतो: जी मैं ज़मीन पर बैठ जाउंगी। सास: अगर मैं भी ज़मीन पर बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी? जीतो: जी मैं ज़मीन में गड्ढा खोद कर उसमे बैठ जाऊँगी। सास: अगर मैं भी गड्ढे में बैठ जाऊं तो तुम क्या करोगी? जीतो: जी मैं ऊपर से मिटटी डाल दूंगी। |
रौबीला चेहरा... घुमावदार बडी बडी मूंछ, आँखों में चमक, हाथों में दोनाली बंदूक और पैरों के पास पड़ा हुआ कम से कम 10 फुटा बब्बर शेर! पेंटिंग्स की दुकान में तस्वीरें देखते देखते मैं अचानक इस तस्वीर के सामने रुक गया और एकटक देख जा रहा था उस तस्वीर ने जैसे मुझको जकड़ सा लिया था! 5000 /- रु. मेरे पूछने पर दुकानदार ने उस तस्वीर की कीमत बताई! हालांकि कीमत कुछ ज्यादा लगी फिर भी मैंने अपनी जेब से रुपये निकाल कर गिने तो वे महज 4500/- ही निकले तब मैंने उस दुकानदार से वह तस्वीर 4500/- रु. में बेचने का आग्रह किया किंतु दुकानदार ने मना कर दिया! दो दिन बाद जब मैं पूरे 5000/- रु लेकर दुकान पर पहुँचा तो पाया कि वह तस्वीर तो बिक चुकी है! कई महीनों तक मुझे वो तस्वीर ना खरीद पाने का मलाल रहा! आज 4 महीने के पश्चात अपने मित्र के ड्राइंग रुम की शोभा बढाते हुए उसी तस्वीर को देखकर मैंने जब अपने मित्र से पूछा तो उसने बताया कि... "ये उसके दादा जी की तस्वीर है। वो बहुत ही बड़े शिकारी थे! बीसियों शेरों का शिकार किया था दादा जी ने अकेले ही। कई अंग्रेज अपॉइंटमेंट लेते थे दादा जी से शिकार करने को!" तब मित्र की बातें सुन मन ही मन मैं सोच रहा था कि... "साले उस दिन पाँच सौ रुपये कम पड गए थे! वरना आज ये मेरे दादा जी होते!" |