हरियाणे का भी रिवाज न्यारा है। उल्टे सीधे नाम निकालने का भी स्वाद न्यारा है; किसी कमजोर को पहलवान कहण का, दूसरे की गर्ल फ्रैंड को सामान कहण का स्वाद न्यारा है; पहलवान को माडू कहण का, और फलों में आडू कहण का।स्वाद न्यारा है; एक अन्धे को सूरदास कहण का, किसी लुगाई न गंडाश कहण का स्वाद न्यारा है। चादर को दुशाला कहण का, लंगड़े को चौटाला कहण का स्वाद न्यारा है। सब्जी को साग कहण का, और काले को नाग कहण का स्वाद न्यारा है। |
एक बै हरियाणा मै बारिस ना होवै थी। तो कुछ शायने माणस कठे हो कै नै एक चौधरी साहब तै नु बोले, "चौधरी साहब तपस्या कर लो, बारिस हो ज्यागी।" चौधरी साहब नै सोचा चलो कोई बात ना सबकी भलाई खातर काम सै कर लेते हैं। तो चौधरी साहब मंडगया तपस्या करण। चौधरी साहब की तपस्या तै खुश हो कै इन्दर देव प्रकट होगे अर चौधरी साहब तै बोले, "वर मांगो।" चौधरी साहब बोले, "मनै किसी चीज़ की कमी ना स खेत खलियान पोता पोती सब है। भगवान की दया तै बस तू बारिस करवा दे।" इतना सुण कै इंद्र बोले, "बारिस तो मै करवा ही दूंगा, पर आप कोई वर मागो।" चौधरी साहब बोले, "चाल इतनी ए जिद कर रहा है तो नु कर एक बै मनै फूफा कह दे।" |
एक छोरा नया नया ब्याहा था, पहली बार ससुराल गया। उसनै घणा बोलण की आदत थी, चुपचाप ना रहया जाया करता। उसकी सासू भी कुछ कम ना थी, सारा दिन फिजूल की बात करती रही। सांझ नै सास परेशान होगी, छोरा तै उसतैं भी घणा बोलै था। वा आपणे उस बटेऊ तैं बोली, "बेटा, सुसराड़ में घणा ना बोल्या करते।" छोरे नै फट जवाब दिया, "तू के आपणी बूआ कै आ रही सै? तेरी भी तै ससुराड़ सै!!" |
यो बात सै म्हारे एक ताऊ की, हुआ नु के एक बै ताऊ पैदल आपणे गांव जावै था। रास्ते में उसके जूते पाँ में काटण लाग गये। ताऊ नै जूतियां आपणी लाठी पै टांग ली। गांम के एक छोरे नै मजाक करण की सुझी अर बोल्या, "ताऊ, परांठे बहुत दूर टांग राखे सै।" ताऊ भी कोई कम ना था। ताऊ बोल्या, "भाई खाण-पीण की चीज़ कहीं भी टांग ल्यो, सुसरे कुत्ते की निगाह वहीं चली जा सै।" |