मैं रोज़ गुनाह करता हूँ और खुदा मुझे माफ़ कर देता है; मैं मज़बूर आदत से हूँ और वो मज़बूर अपनी रेहमत से है। |
इस दश्त के सेहरा को समंदर कर दे; या मेरी आँख के हर अश्क को पत्थर कर दे; या खुदा मैं और कुछ नहीं मांगता तुझ से; मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे। |
को काहू को मित्र नहीं, शत्रु काहू को नाय; अपने ही गुण दोष से, शत्रु मित्र बन जाय। संसार का एक ही नियम है, आप जिसके लिए उपयोगी हैं वो आप को मित्र मानेगा। जिस को आप के कारण नुक्सान हो रहा होगा, वो आप का शत्रु हो जायेगा। |
मुझे इतना नीचे भी मत गिराना हे ईश्वर! कि मैं पुकारूँ और तू सुन ना पाये; और इतना ऊँचा भी मत उठाना कि तू पुकारे और मैं सुन ना पाऊं। |
ऐ खुदा तू भी अपना जलवा दिखा दे; हर किसी की ज़िंदगी तू अपने नूर से सज़ा दे; जो हैं बैठे खामोश से इस समय; उनकी ज़िंदगी भी तू अपने कर्म से रौशन कर दे। |
खूबसूरत तालमेल है मेरे और उसके बीच में; ज्यादा मैं माँगता नहीं, कम वो देता नहीं। |
सब का मालिक वो एक कुल परमात्मा है, उस का अपना कोई नाम नहीं है पर सारे नाम उसकी के हैं, उसको किसी भी नाम से पुकारो वो ज़रूर जवाब देता है। |
शिवाय विष्णु रुपाय शिव रुपाय विष्णवे शिवस्य हृदयं विष्णुः विष्णोश्च हृदयं शिव: |
हज़ारों ऐब हैं मुझमे, नहीं कोई हुनर बेशक; मेरी खामी को तू मेरी खूबी में तब्दील कर देना; मेरी हस्ती है एक खारे समंदर सी मेरे दाता; तू अपनी रहमतों से इसको मीठी झील कर देना। |
सुख भी बहुत हैं, परेशानियां भी बहुत हैं; ज़िंदगी में लाभ बहुत हैं तो हानियां भी बहुत हैं; क्या हुआ जो थोड़े ग़म मिले ज़िंदगी में; खुदा की हम पर मेहरबानियाँ बहुत हैं। |