सीधी होकर वह बहती है; उल्टी होकर वाह-वाह कहती है। बताओ क्या? |
आदि कटे तो गीत सुनाऊँ; मध्य कटे तो संत बन जाऊँ; अंत कटे साथ बन जाता; संपूर्ण सबके मन भाता। बताओ क्या? |
लोहा खींचू ऐसी ताकत है; पर रबड़ मुझे हराता है। खोई सूई मैं पा लेता हूँ; मेरा खेल निराला है। बताओ मैं क्या हूँ? |
ऊपर से नीचे बहता हूँ; हर बर्तन को अपनाता हूँ; देखो मुझको गिरा न देना; वरना कठिन हो जाएगा भरना। |
गर्मी में तुम मुझको खाते; मुझको पीना हरदम चाहते; मुझसे प्यार बहुत करते हो; पर भाप बनूँ तो डरते भी हो। |
तुम न बुलाओ मैं आ जाऊँगी; न भाड़ा न किराया दूँगी; घर के हर कमरे में रहूँगी; पकड़ न मुझको तुम पाओगे; मेरे बिन तुम न रह पाओगे। बताओ मैं कौन हूँ? |
पढ़ने में, लिखने में, दोनों में ही मैं आता काम; कलम नहीं कागज़ नहीं, बताओ क्या है मेरा नाम? |
सीधी होकर, नीर पिलाती; उलटी होकर दीन कहलाती। बताओ क्या? |
यह फूल है काले रंग का, सिर पर हमेशा सुहाए; तेज धूप में खिल-खिल जाता, पर छाया में मुरझाए। बताओ क्या? |
एक राजा की अनोखी रानी, दुम के सहारे पीती पानी। बताओ क्या? |