मेरी औकात से बढ़ कर मुझे कुछ ना देना मेरे मालिक, क्योंकि रौशनी भी अगर ज़रूरत से ज्यादा हो तो इंसान को अँधा बना देती है। |
दौलत छोड़ी दुनिया छोड़ी सारा खज़ाना छोड़ दिया; सतगुरु के प्यार में दीवानों ने राज घराना छोड़ दिया; दरवाज़े पे जब लिखा हमने नाम हमारे सतगुरु का; मुसीबत ने दरवाज़े पे आना छोड़ दिया। |
तेरी रज़ा में सतगुरु रहना आ जाये; दुनिया जो भी कहे सहना आ जाये; ऐसी दो शक्ति हमें ऐ मालिक; खुद चिराग बन कर जलना अ जाये। |
नींद नहीं आती अपने गुनाहों के डर से "अल्लाह", फिर सुकून से सो जाता हूँ ये सोच कर कि तेरा एक नाम "रहीम" भी तो है। |
तेरी मेहर पर शक नहीं है मेरे सतगुरु, मैं तेरे रहम के काबिल हूँ, इस बात पर शक है मुझे। |
भगवान से यह मत कहो कि समस्या विकट है; बल्कि समस्या से कह दो कि मेरे भगवान मेरे निकट हैं। |
दिल कभी ना लगाना दुनिया से दर्द पाओगे, बीती बातें याद करके रोते ही जाओगे, करना ही है तो करो सत्संग, सेवा और सिमरन, हमेशा उम्मीद से दोगुना पाओगे। |
कौन कहता है कि परमात्मा नज़र नहीं आता, एक वही तो नज़र आता है जब कुछ नज़र नहीं आता। |
ज़मीन पे सुकून की तलाश है; मालिक तेरा बंदा कितना उदास है; क्यों खोजता है इंसान राहत दुनिया में; हर मसले का हल तेरी अरदास है। |
आँधियों से न बुझूं ऐसा उजाला हो जाऊँ; तू नवाज़े तो जुगनू से सितारा हो जाऊँ; एक बून्द हूँ मुझे ऐसी फितरत दे मेरे मालिक; कोई प्यासा दिखे तो दरिया हो जाऊँ। |