बचपन में जब धागों के बीच माचिस को फसाकर फोन-फोन खेलते थे, तो मालूम नहीं था एक दिन इस फोन में ज़िंदगी सिमटती चली जायेगी। |
हँस कर जीना यही दस्तूर है ज़िंदगी का; एक यही किस्सा मशहूर है ज़िंदगी का; बीते हुए पल कभी लौटकर नहीं आते; बस यही एक कसूर है ज़िंदगी का। |
क्या है यह ज़िंदगी: देखो तो ख्वाब है ये ज़िंदगी; पढ़ो तो किताब है ये ज़िंदगी; सुनो तो ज्ञान है ये ज़िंदगी; हँसते रहो तो आसान है ये ज़िंदगी। |
ज़िंदगी पल-पल ढलती है; जैसे रेत मुट्ठी से फिसलती है; शिकवे कितने भी हों पर हर पल हँसते रहना; क्योंकि ये ज़िंदगी जैसी भी एक है बस एक ही बार मिलती है। |
दिल से कभी तूने पुकारा ही नहीं; चाह कर भी दूर कभी हुआ नहीं; वक़्त की बेड़ियों ने किया कमज़ोर सही; ज़िंदगी का सही मतलब समझा ही नहीं। |
मौत मिलती है न ज़िंदगी मिलती है; ज़िंदगी की राहों में बेबसी मिलती है; रुला देते हैं क्यों मेरे अपने; जब भी मुझे कोई ख़ुशी मिलती है। |
तेरे ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ; ज़िंदगी तेरी चाहत में सवार लूँ; मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह; तमाम उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़र लूँ। |
ज़िंदगी में कभी उदास मत होना; कभी किसी बात पर निराश मत होना; ज़िंदगी संघर्ष है, चलती ही रहेगी; कभी अपने जीने का अंदाज़ मत बदलना। |
फूल बनके खुशबु फैलना ही है ज़िंदगी; हर दर्द को हँसी में छुपा लेना ही है ज़िन्दगी; ज़िंदगी में जीत मिली तो क्या हुआ; हार कर भी ख़ुशी जताना ही है ज़िंदगी। |
ज़िंदगी बहुत कुछ सिखाती है, कभी हँसाती है कभी रुलाती है; पर जो हर हाल में खुश रहते हैं, ज़िंदगी उनके आगे सिर झुकाती है। |