डायरेक्टर: निखिल अडवाणी
रेटिंग: ***1/2
बाटला हाउस शुरू होती है दिल्ली से. 2008 के बम धमाके हुए एक साल बीत चुका है, एसीपी संजय कुमार (जॉन अब्राहम) की शादिशुदा ज़िन्दगी एक मुश्किल पड़ाव से गुज़र रही है और पत्नी नंदिता (मृणाल ठाकुर) संजय को घर छोड़ कर जाने की धमकी दे रही है.
उसी दिन, संजय के नेतृत्व में चल रही एक इन्वेस्टीगेशन एनकाउंटर में बदल जाती है जिसमे 3 आतंकवादी मारे जाते हैं, 2 भाग जाते हैं और एक पुलिस ऑफिसर, के.के (रवि किशन) को गोली लगती है जो अस्पताल में दम तोड़ देता है.
मीडिया और राजनेता इस एनकाउंटर को फर्जी करार देते हैं और संजय को मीडिया इन सब के लिए विलन बना देता है. उस पर एक डिपार्टमेंटल इन्क्वायरी शुरू हो जाती है और इन सब की वजह से संजय इस घटना में अपने ऑफिसर के.के. की मौत से मानसिक तनाव से गुज़रने लगता है.
'बाटला हाउस' जॉन अब्राहम की फिल्म है, और एक दृढ और इमानदार पुलिसवाले के तौर पर जॉन ने बेहतरीन काम किया है. भगौड़े आतंकवादियों को पकड़ने से लेकर, रूलिंग पार्टी के राजनैतिक फायदे के लिए दबाई जा रही इन्वेस्टीगेशन और उसके अपने सुपिरिअर ऑफिसर्स के प्रेशर से गुज़रते हुए इमानदारी से अपनी ड्यूटी करने की कोशिश कर रहे एसीपी संजय कुमार के किरदार में उन्होंने जान फूँक दी है.
पूरी फिल्म जॉन ने अपने मज़बूत कधों पे बड़ी खूबसूरती से उठायी है. 'सुपर 30' के बाद मृणाल ठाकुर नेभी संजय की वाइफ 'नंदिता' के किरदार को बड़ी सहजता और परिपक्वता से निभाया है. नोरा फतेही एक भगौड़े आतंकी की गर्लफ्रेंड 'हुमा' के रोल में जो स्क्रीन टाइम उन्हें मिला है उसमे ठीक लगी हैं.
फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट की बात करें तो पुलिस ऑफिसर्स और आतंकी सभी ने अपने - अपने किरदारों को अच्छे से परदे पर उकेरा है. खासकर 'मनीश चौधरी' ने कमिश्नर जयवीर के किरदार में प्रशंसनीय काम किया है और रवि किशन जांबाज़ और निडर ऑफिसर के.के. के रोल में खूब जचे हैं.
राजेश शर्मा भी एक करप्ट वकील के रूप में आपका ध्यान खींचने में कामयाब रहते हैं.
कहानी शुरू से अंत तक आपको बाँध कर रखती है और आपकी आँखें स्क्रीन से नहीं हटती जिसका श्रेय फिल्म के डायरेकटर निखिल अडवाणी और राइटर रितेश शाह को जाता है.
फिल्म के एक्शन सीन्स बारीकी और परफेक्शन के साथ फिल्माए गए हैं और बैकग्राउंड स्कोर स्टोरीलाइन पर बखूबी सूट करता है.
फिल्म में ज्यादा गाने हैं नहीं पर जो हैं वो फिल्म की कहानी के साथ चलते हैं, साकी-साकी फिल्म में फिट बैठता है और नोरा फतेही गाने में मनमोहक लगी हैं.
'पिंक' और 'रेड' जैसी फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखने वाले रितेश शाह ने स्क्रिप्ट टाइट राखी है कहानी कहीं भी खिची हुई नहीं लगती. माहिर जवेरी की एडिटिंग भी बढ़िया है हालांकि जॉन के किरदार के तनाव को दर्शाते मानसिक भ्रम वाले सीन्स न भी होते तो चलता.
कुल मिलकर बाटला हाउस को जॉन अब्राहम के करियर की अब तक बेस्ट परफॉरमेंस कह सकते हैं. बाटला हाउस फिल्म के मेकर्स की तरफ से एक साहसिक प्रयास है और ज़बरदस्त एक्टिंग, एक्शन और थ्रिल से भरपूर इस फिल्म को इस वीकेंड देखना ज़रूर बनता है.