स्मिता कहती हैं, `मै और मेरे पती जब एक बार गणेशमुर्ती खरीदने गयें तब मुर्तीकार जिस तरीके से भगवान की मुर्ती का मार्केटिंग कर रहें थे, उससे हम हैरान हो गयें। भगवान की मुर्ती इस तरह से बाजार में बिकते देख दु:ख हुआ, और सोचा कम से कम हमारे घर तो विराजमान होनेवाले गणेश जी का यह घर आते हुए अवमान ना हो। इसिलिए हमने खुद के ही हाथों से गणेशमुर्ती बनाने का फैसला लिया।`
वह आगे कहती हैं, `मेरे पती बेहतरीन मुर्तियाँ बनाते हैं। मुर्तीयों को अच्छे से पेन्ट भी करते हैं। फिर मैं, गणेश जी के लिए अलंकार और वस्त्र बनाती हूँ। अपने हाथों से बने भोजना का भोग चढाती हूँ। हमारे मुर्ती की विशेषता होती हैं, यह मुर्ती बनाते वक्त हम उसमें बीज डालते हैं। इस गणेशमुर्ती का फिर हम घर में ही विसर्जन करते हैं। जिसके बाद जो पौधा खिल उठता हैं। उससे भगवान का आशिर्वाद हमारे साथ हमेशा के लिए रहता हैं, साथ ही पर्यावरण की भी रक्षा कर पातें हैं। मुझे लगता हैं, उत्सव मनाते वक्त नैचर का विनाश ना हो इस का हमें ध्यान रखना चाहिए।