जब महत्त्वाकांक्षाएं खत्म होती हैं, तब ख़ुशी शुरू होती है।
ख़ुशी एक लक्ष्य नहीं है.... यह अच्छी तरह से जिए गए जीवन का एक बाय-प्रोडक्ट है।
ख़ुशी एक ऐसी चीज़ है जो कभी हमारे बाहर से नहीं बल्कि अंदर से ह्रदय से आती है।
आपकी ज़िन्दगी खुशहाल है या नहीं ये आपकी अपनी इच्छा है।
ख़ुशी एक लक्ष्य नहीं है... यह अच्छी तरह से जिए गए जीवन का एक बाय-प्रोडक्ट है।
मैंने पाया है कि ख़ुशी खोने का एक निश्चित तरीका है कि इसे हर कीमत पर चाहा जाये।
जब महत्त्वाकांक्षाएं ख़त्म होती हैं, तब ख़ुशी शुरू होती है।
जो खुद को माफ़ नहीं कर सकता वो कितना अप्रसन्न है।
खुशियों को दामन में भरने पर वह थोड़ी सी लगती हैं, लेकिन यदि उन्हें बांटा जाये तो वे और ज्यादा बड़ी नजर आती हैं।
प्रसन्नता वो पुरस्कार है जो हमें हमारी समझ के अनुरूप सबसे सही जीवन जीने पे मिलता है।