निपुणता एक सतत प्रक्रिया है, कोई दुर्घटना नहीं।
लगातार पवित्र विचार करते रहे बुरे संस्कारों को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है।
हम जिसकी उम्मीद करते हैं वो देने के लिए जीवन बाध्य नहीं है।
बेकार का बहाना बनाने से अच्छा है कोई बहाना ना बनाना।
जब मेरे पास कम पैसे होते हैं तो मैं किताबें खरीदता हूँ, और अगर कुछ बचता है तो मैं खाना और कपड़े लेता हूँ।
धैर्यवान आदमी के क्रोध से सावधान रहो।
इंसान को सबसे बड़ा धोखा अपने विचारो से ही मिलता हैं।
किताब वह सपना है जिसे आप अपने हाथों में संभालते हैं।
यदि हम अपने काम में लगे रहे तो हम जो चाहें वो कर सकते हैं!
अपना भाग्य खुद नियंत्रित करिए नहीं तो कोई और करने लगेगा!