जो अनुशासन के बिना रहता है, वह सम्मान के बिना मर जाता है।
जिसने कभी आज्ञा का पालन करना नहीं सीखा वो कभी अच्छा कमांडर नहीं बन सकता।
हम किसी के दबाव से अनुशासन नहीं सीख सकते।
अनुशासन केवल फौजों के लिए नहीं, जीवन के हर क्षेत्र के लिए है।
नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है।
बाहरी दुनिया की भांति अपने मन और शरीर को भी अनुशासन में रखना चाहिए।
अनुशासन का पालन तभी संभव है, जब मनुष्य का उस काम में अनुराग हो जिसमें वह लगा हुआ है। इसके बिना तो अनुशासन अनुकरण-मात्र होगा।
अनुशासन परिष्कार की अग्नि है, जिससे प्रतिभा योग्यता बन जाती है।