मेरे ख़ुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे;
मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे!
अरमान वस्ल का मेरी नज़रों से ताड़ के;
पहले से ही वो बैठ गए मुँह बिगाड़ के!
अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर;
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते!
मुन्तज़िर हूँ तेरी आवाज़ से तस्वीर तलक;
एक वक़्फ़ा ही तो दरकार था मिलने के लिए!
ख़्वाब में या ख़याल में मुझे मिल;
तू कभी ख़द्द-ओ-ख़ाल में मुझे मिल!
करम नहीं तो सितम ही सही रवा रखना;
तअ'ल्लुक़ात वो जैसे भी हों सदा रखना!
साज़-ए-फ़ुर्क़त पे ग़ज़ल गाओ कि कुछ रात कटे;
प्यार की रस्म को चमकाओ कि कुछ रात कटे!
हिजाब उठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं;
शरीक-ए-इश्क़ कहीं कोई आरज़ू तो नहीं!
ये किस ने तुम से ग़लत कहा मुझे कारवाँ की तलाश है;
जहाँ मैं हूँ तुम हो कोई न हो मुझे इस जहाँ की तलाश है!
दोस्ती की महक हवाओं में रखना;
सबके साथ हमें भी कहीं दुआओं में याद रखना!