नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने;
क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने!
खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए;
काश यूँ भी हो कि बिन मेरे सताए न बने!
बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न उठे;
काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने!
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब';
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने!

गम ए दिल सुनाने को दिल चाहता है,
तुम्हे आज़माने को जी चाहता है;
सुना है कि जब से बहुत दूर हो तुम,
बहुत दूर जाने को जी चाहता है;
उन्हें हम से कोई शिकायत नही है,
यूँ ही रूठ जाने को जी चाहता है!

मेरे पास से जो, गुज़रा मेरा हाल तक ना पूछा;
मैं कैसे मान जाऊं, के वो दूर जाके रोया!

बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं;
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं!
नहीं लगेगा उसे देख कर मगर ख़ुश है;
मैं ख़ुश नहीं हूँ मगर देख कर लगेगा नहीं!
हमारे दिल को अभी मुस्तक़िल पता न बना;
हमें पता है तिरा दिल उधर लगेगा नहीं!

तुम्हें हम भी सताने पर उतर आए तो क्या होगा,
तुम्हारा दिल दुखाने पर उतर आए तो क्या होगा।
हमें बदनाम करते फ़िर रहे हो अपनी महफ़िल में,
अगर हम सच बताने पर उतर आए तो क्या होगा।।

मशरूफ रहने का अंदाज तुम्हे तन्हा ना कर दे ग़ालिब,
रिश्ते फुर्सत के नहीं, तवज्जो के मोहताज होते हैं...!!

याददाश्त का कमज़ोर होना कोई बुरी बात नहीं;
बहुत बैचेन रहते हैं वो लोग जिन्हें हर बात याद रहती है!

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हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है,
दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है;
करते हैं जिस पे तान कोई जुर्म तो नहीं,
शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ उल्फ़त-ए-नाकाम ही तो है!

*इकराम: इनाम
*दुश्नाम: अपशब्द

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कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे;
हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे!

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मिल रही हो बड़े तपाक के साथ;
मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या!

*तपाक: जोश
*यकसर: बिलकुल