ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं, और क्या जुर्म है पता ही नहीं;
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं!

एक सुकून की तलाश में जाने कितनी बेचैनियाँ पाल ली,
और लोग कहते हैं की हम बड़े हो गए हमने ज़िंदगी संभाल ली!

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सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ;
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ!

*ग़ाफ़िल: गहरी नींद सोने वाला

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ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर;
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है!

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वो क्या मंज़िल जहाँ से रास्ते आगे निकल जाएँ;
सो अब फिर एक सफ़र का सिलसिला करना पड़ेगा!

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दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है;
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है!

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मेरी रुस्वाई के अस्बाब हैं मेरे अंदर;
आदमी हूँ सो बहुत ख़्वाब हैं मेरे अंदर!

*रुस्वाई: बदनामी
*अस्बाब: कारण, हालात

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मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए;
कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से!

*इबारत: प्रतीक

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झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए;
और मैं था कि सच बोलता रह गया!

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उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में;
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते!

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