जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर; हर सुब्ह एक अज़ाब है अख़बार देखना!
उम्र जो बे-ख़ुदी में गुज़री है; बस वही आगही में गुज़री है! *आगही: समझ-बूझ
जवाज़ कोई अगर मेरी बंदगी का नहीं; मैं पूछता हूँ तुझे क्या मिला ख़ुदा हो कर! * जवाज़: जाइज़ होना
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था; जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा!
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं; ज़िंदगी तूने तो धोखे पे दिया है धोखा!
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है; ज़िंदगी एक नज़्म लगती है! *नज़्म: कविता
ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को; अपने अंदाज़ से गँवाने का! *फ़न: कला
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा; आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी! *आह-ओ-ज़ारी: विलाप/शोक
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है; ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है!
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा;
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा!