तप्त हृदय को:

तप्त हृदय को, सरस स्नेह से,
जो सहला दे, मित्र वही है;

रूखे मन को, सराबोर कर,
जो नहला दे, मित्र वही है;

प्रिय वियोग, संतप्त चित्त को,
जो बहला दे, मित्र वही है;

अश्रु बूँद की, एक झलक से,
जो दहला दे, मित्र वही है।

दर्द कागज़ पर:

दर्द कागज़ पर, मेरा बिकता रहा,
मैं बैचैन था, रातभर लिखता रहा;

छू रहे थे सब, बुलंदियाँ आसमान की,
मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा;

अकड होती तो, कब का टूट गया होता,
मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा;

बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से,
रंग मेरा भी निखरा पर, मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा;

जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,
मैं समन्दर से राज, गहराई के सीखता रहा!

दरिया का सारा नशा:

दरिया का सारा नशा उतरता चला गया,
मुझको डुबोया और मैं उभरता चला गया;

वो पैरवी तो झूठ की करता चला गया,
लेकिन बस उसका चेहरा उतरता चला गया;

हर साँस उम्र भर किसी मरहम से कम न थी,
मैं जैसे कोई जख्म था भरता चला गया।

दुश्मन को भी सीने से:

दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले,
हम अपने बुजुर्गों का ज़माना नहीं भूले;

तुम आँखों की बरसात बचाये हुये रखना,
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले;

ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने,
हम आप की तस्वीर बनाना नहीं भूले;

इक ऊम्र हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ,
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नहीं भूले।

ख़ुदा की मोहब्बत को:

ख़ुदा की मोहब्बत को फ़ना कौन करेगा,
सभी बन्दे नेक हों तो गुनाह कौन करेगा;

ऐ ख़ुदा मेरे दोस्तों को सलामत रखना,
वरना मेरी सलामती की दुआ कौन करेगा;

और रखना मेरे दुश्मनों को भी महफूज़,
वरना मेरी तेरे पास आने की दुआ कौन करेगा!

तेरा मुस्कुराना नहीं:

तेरा मुस्कुराना नहीं भूलता है,
वो नज़रें झुकाना नहीं भूलता है;

मेरी ख़ाबगाह में मेरी जान का वो,
दबे पाँव आना नहीं भूलता है;

कि शर्मा के दांतों तले फिर तुम्हारा,
वो ऊँगली दबाना नहीं भूलता है;

वो गेसू सुखाना तेरा छत पे आ के,
क़यामत गिराना नहीं भूलता है;

लिपटना मेरे साथ आकर तुम्हारा,
वो मंज़र सुहाना नहीं भूलता है;

मुहब्बत निभाता दिलो-ओ-जाँ से 'सागर',
पुराना ज़माना नहीं भूलता है!

मुझको एक बार:

मुझको एक बार आजमाते तो सही,
वो मेरी बज़्म में आते तो सही;

मैंने रखा था सर-ए-शाम से घर को सजाकर,
तुम न रुकते एक पल को आते तो सही;

आपकी खातिर आपकी खुशियों की खातिर,
खुद भी हो जाता नीलाम, बताते तो सही;

यकीनन आपके हिस्से में रोशनी होती,
शम्म-ए-वफ़ा दिल में एक बार जलाते तो सही;

मैं भी इंसान हूँ पत्थर नहीं, क्यूँ ठुकराया,
खुद हो जाता टुकड़े-टुकड़े बताते तो सही!

गम-ए-जिंदगी को:
गम-ए-जिंदगी को इस कदर सँवार लेते हैं,
जाम होंठो से जिगर तक उतार लेते हैं;

तबाह होने की चाह में क्या-क्या करें हम,
एक रोग नया तेरे इश्क का आज़ार लेते हैं;

माना कि फांसलों से ही नजदीकीयाँ अपनी मगर,
दिल कहे, सुनेंगे कभी, एक दफा पुकार लेते है;

एक भी काम ना आया मशवरा तुझे भुलने का,
मगर, तेरी याद के लम्हें वक्त से बेशुमार लेते हैं;

ये मय ही तो हमदर्द , हमसफर मेरा अब साक़ी,
दर्द मिटाने को दवा कहा इश्क के बीमार लेते हैं!

तेरी किताब के हर्फ़े:

तेरी किताब के हर्फ़े समझ नहीं आते,
ऐ ज़िन्दगी तेरे फ़लसफ़े समझ नहीं आते;

कितने पन्नें हैं, किसको संभाल कर रखूँ,
और कौन से फाड़ दूँ सफे, समझ नहीं आते;

चौंकाया है ज़िन्दगी यूँ हर मोड़ पर तुमने,
बाक़ी कितने हैं शगूफे समझ नहीं आते;

हम तो ग़म में भी ठहाके लगाया करते थे;
अब आलम ये है कि लतीफे समझ नहीं आते;

तेरा शुकराना जो हर नेमत से नवाज़ा मुझको,
पर जाने क्यों अब तेरे तोहफ़े समझ नहीं आते!

राहत-ए-जाँ से तो:

राहत-ए-जाँ से तो ये दिल का बवाल अच्छा है,
उसने पूछा तो है इतना तेरा हाल अच्छा है;

माह अच्छा है बहुत ही न ये साल अच्छा है,
फिर भी हर एक से कहता हूँ कि हाल अच्छा है;

तेरे आने से कोई होश रहे या न रहे,
अब तलक तो तेरे बीमार का हाल अच्छा है;

आओ फिर दिल के समंदर की तरफ़ लौट चलें;
वही पानी, वही मछली, वही जाल अच्छा है;

कोई दीनार न दिरहम न रियाल अच्छा है,
जो ज़रूरत में हो मौजूद वो माल अच्छा है;

क्यों परखते हो सवालों से जवाबों को,
होंठ अच्छे हों तो समझो कि सवाल अच्छा है!