मचुर शायरी


इश्क मोहब्बत क्या है मुझे नही मालूम,
बस उसकी याद आती है और खडा हो जाता है।

एक बार नहीं सौ बार ये दिल टूटा;
पर चोदने का शौक साला फिर भी ना छूटा।

मारना ही था तो कुछ और तरीका अपना लेती जालिम,
जहर भी चटाया तो चूत पे लगाके।

'सपना' को देखकर 'सपने' मे 'स्वपनदोष' हो गया;
'सपना' भी बच गई ओर 'संतोष' भी हो गया।

सींग नही होते लोमड़ी के,
सींग नही होते लोमड़ी के,
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और कैसा रहा आज का दिन भोसड़ी के?

मोहब्बत की आजमाइश देते-देते थक गया हूँ ए-गालिब,
लगता है अब पैसे देकर ही किसी की लेनी पड़ेगी।

उसने उतारी साडी,
फिर आई पेटीकोट की बारी;
ब्लाउज तो पहले ही दिया था उतार;
ज्यादा उत्साहित ना हो मेरे यार,
यह तो था कपडे सुखाने का तार।

कौन कहता है लंड यहां मूतने को आता है;
हम खुश हुए कि हम भी इसकी उपज हैं;
लेकिन अफ़सोस, यह तुम्हें मिलकर मालूम हुआ;
कि यह तेरे जैसे गांडू भी बनाता है।

चोद-चोद चोद गये, जब पकड़े गये छेदु राम हकीम;
मसल-मसल के टपक-टपक लिए उन्होंने मज़े खूब।
जान पे आन भनी जब साली की इश्क़ में गये डूब;
बीवी ने भी खूब पकड़ा, जब मुँह में थे साली के बूब्स।

चाहत तो थी उनके दिल में बस जाने की;
कम्बखत ने ब्लाउस के बटन ही ना खोले!

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