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एक कवित्री की सुहागरात के बाद उसकी सहेली ने जब पूछा कि कैसी रही उसकी सुहागरात तो कवित्री ने अपने अंदाज़ में कुछ यूँ दिया जवाब:
आये थे वो ज़रा देर से, दिल जला दिया;
पहले किया उन्होंने दरवाज़ा बंद और फिर दीपक बुझा दिया;
पहले दबाई चूचियाँ उन्होंने टटोलकर,
फिर खेलने लगे मेरी चूत से चड्डी खोल कर;
एक जंग ऐसी छिड़ी पलंग पर,
फिर तैयार कर गोले वाली तोप अपनी दाग दी उन्होंने मेरी सुरंग पर;
करते रहे हमला लगातार वो, आने लगा मुझे भी अजीब सा मज़ा;
इसी मज़े में छाया कुछ ऐसा नशा कि भूल गयी मैं इसके बाद की सजा;
कुछ यूँ गुज़री सुहागरात मेरी कि पूरी हो गयी मेरे मन की हर एक रज़ा।
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ये बहूत विनम्र है, हमेशा झुका रहता है
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स्नानगृह में नहाने को जैसे ही मैं निर्वस्त्र हुई,
मेरे कानों को लगा सखी, दरवाज़े पर है खड़ा कोई,
धक्-धक् करते...