अगर आप हर रगड़ से चिढ़ कर रहे हैं, तो अपने दर्पण को कैसे पॉलिश करेंगे। |
अपने शब्दों को ऊँचा करो आवाज़ को नहीं। यह बारिश है जो फूलों को बढ़ने देती है इसकी ग़रज़ नहीं। |
अगर आप रगड़ से चिढ़ते हैं तो पॉलिश कैसे हो पाओगे। |
अपने शब्दों को ऊँचा करो आवाज़ को नहीं। यह बारिश है जो फूलों को बढ़ने देती है इसकी ग़रज़ नहीं। |
जब आप हर रगड़ से चिढ़ोगे तो खुद को निखारोगे कैसे। |
तुम समंदर की एक बूँद नहीं हो। तुम एक पूरा समंदर हो। |
अपने काम में सुन्दरता तलाशो। उससे सुंदर और कुछ हो ही नहीं सकता। |
दुनिया हमे यह बताकर मूर्ख बनाती है कि हमें कल का इंतज़ार करना चाहिए, जबकि जीवन का आनंद इसी क्षण में है जिसमे आप जी रहे हैं। |
कहीं भी जाने की कोई जरूरत नहीं है। अपने भीतर का सफर तय करो। |
अपने काम में सुन्दरता तलाशो, उससे सुंदर और कुछ हों ही नहीं सकता। |