मच्छर जैसी ज़िन्दगी हो गयी है! जहाँ जाओ लोग पहले स्प्रे मारते हैं! |
बहुत ज़रूरी हो तो ही घर से निकलें! जैसे दारु लेने! |
ज़िन्दगी भर हम बस दिल-दिल करते रहे! एक वायरस आया और उसने बताया कि फेफड़े भी ज़रूरी हैं! |
गुज़र रही है ज़िन्दगी ऐसे मुकाम से; अपने भी पराए लगने लगे हैं, सर्दी-जुकाम से! |
2020 तो ऐसे ही गालियाँ खा गया, असली रंग तो 2021 दिखा रहा है! |
बहुत कोशिश करके 'क्वारंटाइन' और 'हैड्रोक्लोरोक्विन' बोलना सीखना था! अब 'रेमडीसीवीर' नया आ गया! |
पहले हम छुट्टियों के मज़े लेते थे! अब छुट्टियां हमारे मज़े ले रहीं हैं! |
बेचारी लड़कियाँ किसी के घर रिश्तेदारी में भी जाएं तो बस एक ही दिन मेहमान नवाज़ी होती है! दूसरे दिन वो लोग भी बर्तन मंजवा लेते हैं! |
कोरोना को चाहे जितनी मर्ज़ी गालियाँ दो! पर बेचारे ने आज तक ना तो किसी के साथ भेदभाव किया ना ही जातिवाद! सबका साथ सबका सत्यानाश! |
महिलायें खुद को 45 की मान नहीं रही थी! 18 साल से ऊपर वालों को वैक्सीन बस इसलिए ही किया गया है! |