कहाँ छुपा के रख दूँ मैं अपने हिस्से की शराफ़त, जिधर भी देखता हूँ उधर बेईमान खड़े हैं, क्या खूब तरक्की कर रहा है अब देश देखिये, खेतों में बिल्डर और सड़कों पर किसान खड़े हैं! |
जितना सिख धर्म का प्रचार SGPC 100 सालों तक नहीं कर सकी, उस से कई गुणा सिख धर्म का प्रचार किसान आंदोलन ने कर दिखाया! इंसानियत, प्यार, विश्वास, अडिगता, हक़, परमात्मा पर विश्वास, निडरता, संगत, पंगत, हक़ कमाई इत्यादि का जीता जागता उदाहरण है - किसान आंदोलन! |
स्वार्थी इंसान का पता उस से नज़दीकियाँ बढ़ने पर चलता है और निस्वार्थ इंसान का पता उससे दूरियाँ बढ़ने पर चलता है! |
जो किसान खेत में चोट लगने पर मिट्टी लगा लेता है पर घर तक नहीं जाता! वो किसान दिल्ली तक आया है, इसका मतलब ज़ख्म गहरा दिया है! |
किसानों में खालिस्तानी उन्हें ही नज़र आ रहे हैं! जिन्हें आसा राम में अपना बाप नज़र आता है! |
काश किसानों की तरह पढ़े-लिखे लोग भी सड़कों पर आ जाते! ना एयरपोर्ट बिकता, ना रेलवे स्टेशन, ना LIC, BPCL बिकती, ना नौकरी जाती, ना बेरोज़गारी बढ़ती, ना GDP गिरती! |
अकड़: इस शब्द में कोई मात्रा नहीं है लेकिन फिर भी अलग-अलग मात्रा में सबके पास है! |
वक़्त तो सिर्फ वक़्त पे ही बदलता है! बस इंसान ही है, जो किसी भी वक़्त बदल जाता है! |
पहले लोग हफ्ते में 2 रविवार मांगते थे! अब एक है तो उसका भी पता नहीं चलता! आने वाला है, ध्यान रखना! |
सबको अपने अपने कर्मो का पता होता है, "जनाब"... यूँ ही गंगा में भीड़ नहीं होती! |