दारु छोड़ने के लिए इरादे तो अम्बुजा सीमेंट की तरह मज़बूत थे,
कमबख्त दिल ही सरकारी पुल निकला।
अगर सरकार बोल दे कि एक पेड़ लगाओ और 1 दारू की बोतल फ्री पाओ,
कसम खुदा की, बेवड़े पूरी धरती को हरियाली में बदल देंगे।
सोचा था 2 पेग मार के 10 बजे तक घर पहुँच जाऊंगा।
साले, ये नंबर/गणित कभी समझ नही आये, आपस में बदली हो गए।
10 पेग हो गए और 2 बजे घर पहुँचा।
मैं अक्सर ये सोचता हूँ कि देश में ऐसी कौन सी शराब आती है जिसे फिल्मों में हीरो और विलेन बिना पानी, सोडा और चखने के पी जाते हैं।
ऐसी गर्मी के लिए ही गालिब ने लिखा था:
तोहफे में मत गुलाब लेकर आना,
क़ब्र पे मत चिराग लेकर आना;
बहुत प्यास है बरसो से ऐ दोस्त,
जब आना तो... दो किंगफ़िशर और दो ग्लास लेकर आना।
दूसरे देशों में लोग कहते हैं घर जाओ, तुमने पी रखी है।
हमारे देश में कहते हैं, अबे घर मत जा, तूने पी रखी है।
आज सुबह पेपर वाला भास्कर की जगह टाइम्स ऑफ़ इंडिया डाल गया। फिर क्या
रात 8 बजे का इंतज़ार कर रहा हूँ क्योंकि बिना पिये इंग्लिश कहाँ आती है।
चिड़ियों की तरह हमें भी गर्मी लगती है, हमारी भी कुछ इच्छाएँ होती हैं।
इसलिए हमारे लिए एक बर्तन में ठंडी बीयर और दूसरे में नमकीन रखना ना भूलें।
शराबी: अगर मेरे हाथ में सरकार होती तो मैं देश की तक़दीर बदल देता।
पत्नी (सुन कर लोट पोट होते हुए): पहले पजामा तो बदल लो, सुबह से मेरी सलवार पहन के घूम रहे हो।
रात को दो शराबियों ने तालाब में चाँद की परछाई देखी..
पहला बोला: यह क्या है?
दूसरा बोला: यह चाँद है।
पहला बोला: साले, घर चल, हम मजाक-मजाक में 'चाँद' तक आ गए।