क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है। अतः हमें सदैव शांत व स्थिरचित्त रहना चाहिए।

ईर्ष्या और क्रोध से जीवन क्षय होता है।

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सुख सर्वत्र मौजूद है, उसका स्त्रोत हमारे ह्रदयों में है।

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खुशी ही जीवन का अर्थ और उद्देश्य है, और मानव अस्तित्व का लक्ष्य और मनोरथ।

कृतज्ञता मित्रता को चिरस्थायी रखती है और नए मित्र बनाती है।

हमारी खुशी का स्रोत हमारे ही भीतर है, यह स्रोत दूसरों के प्रति संवेदना से पनपता है।

थोड़े दिन रहने वाली विपत्ति अच्छी है क्यों कि उसी से मित्र और शत्रु की पहचान होती है।

आनंद वह खुशी है जिसके भोगनें पर पछतावा नहीं होता।

प्रसन्नचित्त मनुष्य अधिक जीते हैं।

इंसान जितना अपने मन को मना सके उतना खुश रह सकता है।

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