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कभी-कभी लोग कुछ कह कर अपनी एक प्रभावशाली छाप बना देते हैं, और कभी-कभी लोग चुप रहकर अपनी एक प्रभावशाली छाप बना देते हैं।

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मंदिरों की आवश्यकता नहीं है, ना ही जटिल तत्त्वज्ञान की। मेरा मस्तिष्क और मेरा हृदय मेरे मंदिर हैं; मेरा दर्शन दयालुता है।

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हम बाहरी दुनिया में कभी शांति नहीं पा सकते हैं, जब तक हम अन्दर से शांत ना हों।

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यदि भगवान छु-अछूत को मानता है तो मैं उसे भगवान नहीं कहूँगा।

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चरित्र को हम अपनी बात मनवाने का सबसे प्रभावी माध्यम कह सकते हैं!

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अपने गुरु में पूर्ण रूप से विश्वास करें, यही साधना है!

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व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है, और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है, और वह अकेले ही नर्क या स्वर्ग जाता है!

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यदि मानव जाति को जीवित रखना है, तो हमें बिलकुल नयी सोच की आवश्यकता होगी!

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यदि बोलने की स्वतंत्रता छीन ली जाये तो शायद गूंगे और मौन हम उसी तरह संचालित होंगे जैसे भेड़ को बलि के लिए ले जाया जा रहा हो!

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बीस साल की उम्र में इंसान अपनी इच्छा से चलता है, तीस में बुद्धि से और चालीस में अपने अनुमान से!

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