एक देश की तरक्की एक समाज की नींव यानी परिवार से ही शुरू होती है।

परिवार आपसी सहिष्णुता और स्वीकार्यता सीखने और अभ्यास करने के लिए सबसे अच्छी जगह है।

घर के समान कोई स्कूल नहीं, न ईमानदारी व सदाचारी माता-पिता के समान कोई अध्यापक है।

जब घर में अतिथि हो तब चाहे अमृत ही क्यों न हो, अकेले नहीं पीना चाहिए।

हम जब तक स्वयं माता-पिता नहीं बन जाएं, माता-पिता का प्यार कभी नहीं जान पाते।

जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय।

इसे एक नियम बना लीजिए कभी भी किसी बच्चे को वो किताब पढ़ने को मत दीजिए जो आप खुद नहीं पढेंगे।

एक आदमी या औरत के पालन -पोषण का परीक्षण है कि वे झगड़ा होने पर कैसे व्यवहार करते हैं।

अगर आप एक बच्चे के माता पिता हैं तो आप माता-पिता है लेकिन अगर आप दो बच्चों के माता-पिता हैं तो आप रेफरी है।

जो आप हो वही रहो, और जो, महसूस करते हो वो कहो क्योंकि जो इसका बुरा मानते है, वह आपके लिए मायने ही नहीं रखते और जो आपके लिए मायने रखते है, वो बुरा नहीं मानते।