चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए।
सौन्दर्य तो अस्थायी है, लेकिन मन आपका साथ जीवन भर देता है।
जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है।
ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका अविष्कार करता है।
बारह ज्ञानी एक घंटे में जितने प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं उससे कहीं अधिक प्रश्न मूर्ख व्यक्ति एक मिनट में पूछ सकता है।
खूबसूरती चेहरे पर नही होती। ये तो दिल की रोशनी है, बहुत ध्यान से देखनी पड़ती है।
अनुशासन केवल फौजों के लिए नहीं, जीवन के हर क्षेत्र के लिए है।
एक बुराई, दूसरी बुराई को जनम देती है।
नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है।

बाहरी दुनिया की भांति अपने मन और शरीर को भी अनुशासन में रखना चाहिए।