नुक्स निकालते हैं लोग इस कदर हम में;
जैसे उन्हें खुदा चाहिए था और हम इंसान निकले..!
तेरा दीदार हो हसरत बहुत है; चलो कि नींद भी आने लगी है!
मैंने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी; कोई आहट न हो दर पर मेरे जब तू आए!
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा, इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा; जिस तरह से थोड़ी सी तेरे साथ कटी है, बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा!
हसरतों का हो गया है इस क़दर दिल में हुजूम; साँस रस्ता ढूँढती है आने जाने के लिए!
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी; किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी!
गर्मी बहुत है आज खुला रख मकान को; उस की गली से रात को पुर्वाई आएगी! *पुर्वाई: पूर्व की वायु
दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर;
दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग!
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम;
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम!
मेरा जी तो आँखों में आया ये सुनते; कि दीदार भी एक दिन आम होगा! *जी: दिल