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कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए;
तुम्हारे नाम की एक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए!

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बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है;
उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है!

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तेरा दीदार हो हसरत बहुत है;
चलो कि नींद भी आने लगी है!

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आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे;
तितलियाँ मंडरा रही हैं काँच के गुल-दान पर!

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ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना;
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते!

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लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे;
जी चाहता है मैं तेरी आवाज़ चूम लूँ!

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तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना;
मेरी आँखों पे अपनी दीद की इक शाम लिख देना!

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ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ;
काश तुझ को भी इक झलक देखूँ!

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दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह;
आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के!

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अंधेरा है कैसे तेरा ख़त पढ़ूँ;
लिफ़ाफ़े में कुछ रौशनी भेज दे!