वैसे तो एक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए;
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता!
और कुछ तोहफ़ा न था जो लाते हम तेरे नियाज़; एक दो आँसू थे आँखों में सो भर लाएँ हैं हम! *नियाज़ : इच्छा, दर्शन
तुझ सा कोई जहान में नाज़ुक-बदन कहाँ; ये पंखुड़ी से होंठ ये गुल सा बदन कहाँ!
मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है; उम्र का बेहतरीन हिस्सा है!
भोले बन कर हाल न पूछ बहते हैं अश्क तो बहने दो; जिस से बढ़े बेचैनी दिल की ऐसी तसल्ली रहने दो!
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँ ही आँखें;
उदास होने का कोई सबब नहीं होता!
रोने वाले तुझे रोने का सलीक़ा ही नहीं;
अश्क पीने के लिए हैं कि बहाने के लिए!
आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते;
दो कश्तियाँ मिली हैं डुबोने के वास्ते!
आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं;
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है!
सोचता हूँ मैं कि कुछ इस तरह रोना चाहिए;
अपने अश्कों से तेरा दामन भिगोना चाहिए!