निर्देशक: ओलिवर दहन
रेटिंग: ** 1/2
'परियों की कहानी हमेशा से ही विश्व भर में निर्देशकों के लिए एक पसंदीदा विषय रहा है। वहीं इसी तर्ज पर 'ग्रेस ऑफ़ मोनेको' भी ऐसी ही कुछ कहानी बयान करती है। जो अपने सपनों के राजकुमार से शादी करने के बाद जीवन के दायित्वों को निभाने में व्यस्त हो जाती है।
हालाँकि अमेरिका पुरस्कार विजेता अभिनेत्री ग्रेस पेट्रीसिया केली की जिंदगी भी एक "परियों की कहानी ' की ही तरह थी। वहीं इस फिल्म में एक उनके एक 'प्रिंसेस ऑफ़ मोनेको' के तौर जीवन के सिर्फ चार सालों को शामिल किया गया है। जिसमें उनकी इच्छा अनुसार उनके शाही जीवन में बदलाव आता है। फिल्म एक चरित्र की कल्पनाओं और उसके जीवन की समस्यांओं को उजागर करती है।
निर्देशक ओलिवियर दहन की कथा मोनाको में दिसंबर 1961 से शुरू होती है, जिसमें ग्रेस शादी के पांच साल के बाद मूवीज से रिटायर हो जाती है और अब वह जिंदगी से तंग है। अब वह राजकुमार रेनियर III के लिए एक सजावटी पत्नी और एक सहृदय माँ है। जो रिवाजों और परंपराओं में जकड़ी है।
इसके बाद उन्हें एक उम्मीद की किरण उस वक़्त नजर आती है जब निर्देशक अल्फ्रेड हिचकॉक उनके लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर जख्म क्लेपटोमानीया से बिमार विषय पर आधारित फिल्म 'मारनी' का प्रस्ताव लेकर आता है। और अब उनकी इच्छा हॉलीवुड में वापिस लौटने की है, वहीं दूसरी और वह अपने पति के साथ एक अव्यवस्थित रिश्ते से भी परेशान है। जिसके बाद यह खबर और चर्चा का विषय बन जाती है और उनका रिश्ता टूटने की कगार पर आ जाता है।
अब मोनाको के जीवन में रियासती और राजनीतिक टकराव की भी परेशानी उभरने लगती है। जिंदगी के ऐसे मुकाम पर ग्रेस को उनके पुजारी और दोस्त द्वारा सलाह दी जाती है कि वह अपनी जिदंगी की मुश्किलों को सुलझाने के लिए अपने आप को अपने परिवार और बच्चों के लिए ही समर्पित कर दे। लेकिन इसके बाद वह अपनी मर्जी से फैंसला करती है और दोबारा से 'क्रुक्स' के रूप में अपना जादू चलाती है।
"ग्रेस ऑफ़ मोनाको' पूरी तरह से निकोल किडमैन की फिल्म है। जिसमें वह पूरी तरह से ग्रेस के किरदार में समा गई है। उन्होंने यह किरदार बेहद अच्छे से निभाया है। वहीं उनके पति के रूप में टीम रोथ का किरदार काफी सहायक लेकिन अवसरवादी है। एक पुजारी के रूप में फ्रैंक लांगेल्ला काफी आत्मविश्वासी लगे हैं। इनके अलावा बाकी सभी कलाकार सिर्फ फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करते दिखें हैं।
इस नाटकीय किस्म की फिल्म में दुर्भाग्यवश उम्दा प्रदर्शन और कैमरा शॉट्स का अभाव है। लेकिन साथ ही कहीं-कहीं किसी महत्वपूर्ण दृश्य में यह बहुत स्पष्ट भी है