कितनी नन्ही से परिभाषा है दोस्ती की; मैं शब्द... तुम अर्थ... तुम बिन मैं व्यर्थ। |
नज़र चाहती है दीदार करना; दिल चाहता है प्यार करना; क्या बताएं इस दिल का आलम; नसीब में लिखा है इंतज़ार करना। |
होती नहीं है मोहब्बत सूरत से; मोहब्बत तो दिल से होती है; सूरत उनकी खुद-ब-खुद लगती है प्यारी; कदर जिनकी दिल में होती है। |
यकीन पे यकीन दिलाते हैं दोस्त; राह चलते को बेवकूफ बनाते हैं दोस्त; शरबत बोल कर दारू पिलाते हैं दोस्त; पर कुछ भी कहो साले बहुत याद आते हैं दोस्त। |
यादों की भीड़ में आप की परछाई सी लगती है; कानों में कोई आवाज़ एक शहनाई सी लगती है; जब आप करीब हैं तो अपना सा लगता है; वर्ना सीने में सांस भी पराई सी लगती है। |
कोई टूटे तो उसे बनाना सीखो; कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो; रिश्ते तो मिलते हैं मुक़द्दर से बस; उन्हें ख़ूबसूरती से निभाना सीखो। |
दुनियादारी में हम थोड़े कच्चे हैं; पर दोस्ती के मामले में सच्चे हैं; हमारी सच्चाई बस इस बात पर कायम है; कि हमारे दोस्त हमसे भी अच्छे हैं। |
प्यार करने वालों की किस्मत खराब होती है; हर वक़्त इम्तिहान की घडी साथ होती है; वक़्त मिले तो कभी रिश्तों की किताब खोल कर देखना; दोस्ती हर रिश्ते से लाजवाब होती है। |
होठों पे उल्फ़त के फ़साने नहीं आते; जो बीत गए फिर वो ज़माने याद नहीं आते; दोस्त ही होते हैं दोस्तों के हमदर्द; कोई फ़रिश्ते यहाँ साथ निभाने नहीं आते। |
यहाँ कौन किसका रकीब होता है; कौन किसका हबीब होता है; बन जाते हैं रिश्ते इस दुनिया में; जहाँ जहाँ जिसका नसीब होता है। |